Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 34
________________ उत्तर: पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ सफेद ऊन के कटासणे (आसन) पर पद्मासन में बैंटकर, आँखे बंद करके अपने नाक की ऊँचाई तक सुतर की सफेद नवकारवाली हाथ में लेकर 108 नवकार मंत्र का जाप रोज नियमित रुप से करना चाहिए । प्रश्न: नवकार मंत्र कब कब गिनना चाहिए ? उत्तर: खाते-पीते, उठते-बैठते, सोते-जागते आदि कोई भी काम करते करते कभी भी नवकार मंत्र गिन सकते है । यदि वस्त्र अशुद्ध हो तो भी होंठो को हिलाए बिना पल-पल, हमेशा नवकार मंत्र का स्मरण सतत् करते रहना चाहिए। तीन या एक नवकार गिनकर ही कोई नया काम शुरु करूँगा यह नियम तो कम से कम प्रत्येक व्यक्ति को लेना चाहिए । रात को सोते समय सात प्रकार के भय को दूर करने के लिए सात नवकार गिनने चाहिए । सुबह उठते समय आठ कर्मों का नाश करने के लिए आठ नवकार गिनने चाहिए। अरिहंत के 12 गुण होते है । अत: तीनों समय 12-12 नवकार गिन सकते है। नवकार के 68 अक्षर 68 तीर्थों के सार है । इसके नौ पद नौ निधि प्रदान करते है । आठ संपदा से आठ सिद्धियाँ प्राप्त होती है । नवकार मंत्र 14 पूर्व का सार है । मृत्यु समय गिना हुआ नवकार सद्गति प्रदन करता है। चौदह पूर्वी भी अंत समय में नवकार मंत्र का स्मरण करते है । अत: हमें तो नवकार मंत्र का सतत् स्मरण अवश्य रुप से करना चाहिए । समरो मंत्र भलो नवकार समरो मंत्र भलो नवकार, ए छे चौद पुरवनो सार एना महिमा नो नही पार, अनो अर्थ अनंत अपार (1) सुखमां समरो, दु:खमां समरो, समरो दिवस ने रात, जीवता समरो, मरता समरो, समरो सौ संगाथ (2) जोगी समरे भोगी समरे, समरे राजा रंक देवो समरे दानव समरे, समरे सौ नि:शंक (3) अडसठ अक्षर अना जाणो, अडसठ तीरथ सार, आठ संपदाथी परमाणो, अड सिद्धि दातार (4) नवपद अना नवनिधि आपे, भवोभवना दु:ख कापे, वीरवचनथी हृदये स्थापे, परमातम पद आपे (5) 32

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