Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 28
________________ अपने सुख से अन्य को दुःख हो, अपने आनंद से अन्य को शोक हो, अपने मजे से अन्य की मौत हो । ऐसा सुख, आनंद, मजा अपने लिये सजा बन जायेगी। अल्पकालीन आनंद दीर्घकालीन दुःखदाता बन जाएगा । अत: बच्चों ! दिवाली के पर्व को दया के दीपक से मनाना, आतिशबाजी के खिलवाड से दूर रहना व दूसरों को भी दूर रहने की प्रेरणा करना, क्योंकि पटाखों से उत्सव मनाने से दिवाली अन्य जीवों के लिए होली बनती हो तो ऐसी दिवाली किस काम की? अतः ऐसे हिंसक अनर्थ दंड के पाप अर्थात् अकारण बँधते हुए पाप से दूर ही रहने में फायदा है । दिल को प्रकाशित करे, उसका नाम दिवाली और दिल को जलाए, उसका नाम है होली । दिवाली दयापूर्वक मनाओ: जहाँ दया वहाँ दिवाली, जहाँ हिंसा वहाँ होली । पटाखे न फोडने से बचाये हुए पैसों से देवगुरु की भक्ति के अतिरिक्त दया आदि के कार्य किये जा सकते है, साधर्मिक की सेवा हो सकती है, रोगी जनों को दवाई दिलवा सकते है, पांजरापोलपशुशाला में सहायता की जा सकती है, क्योंकि जीव दया भी एक महान् धर्म है । अभयदान महालाभकारी है, जबकि पटाखे फोडना महापाप है । सारे भारत देश में कितने करोडो- अरबों रुपयों के पटाखे फूटते होंगे? शादी-ब्याह प्रसंगों पर भी कितने रुपये पटाखे फोडने में व्यर्थ खर्च होते है, उसके बजाय यदि यही अरबों रुपये सन्मार्ग पर खर्च करके सदुपयोग किये जाए तो कई लोग लाभान्वित हो सकते है। पटाखों का पैसा आग में राख हो गया और जीवों के लिए त्रास रुप बना । इसीलिए एक कवि ने कहा है कि - छोटे बडे बालकों, पटाखे मत फोडना, पटाखों में पाप है, जीव जंतु को त्रास है । C. लक्ष्मी-सरस्वती का अपमान जैसे हमें जीना पंसद है, उसी प्रकार अन्य जीवों को भी जीना पसंद है, मरना किसी को भी पसंद नहीं है। जैसे हमें दुःख अच्छा नहीं लगता, सुख प्रिय लगता है, वैसे ही अन्य जीवों को भी दुःख प्रिय नहीं लगता, उन्हें भी सुख ही प्रिय लगता है । मान लो कि आपकी पिटाई करके अथवा आपको दुःखी करके अन्य बालक हँसे, आनंद प्राप्त करें तो आपको अच्छा लगेगा क्या ? बिल्कुल ही नहीं, तो फिर अन्य अनेक जीव मरें, तडपें, दुःखी हो अथवा व्यथित हों, उसमें आप आनंदित हों यह आप जैसे जैन कुल में उत्पन्न और दया प्रेमी को कैसे 26

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