Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૧૩૧ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ કાર્તિક 1 निवारण करते हैं । चौथी बार फिर भगवान राजगृह पधारते हैं और श्रेणिक की दुर्गन्धा रानी की दीक्षा तथा गोशालक के साथ आर्द्रकुमार मुनि की चर्चा होती है । इस प्रकार ४ बार भगवान राजगृह गये और जो जो घटनायें घटीं उन सभी का 'ग' चरित्र ने एक ही साथ वर्णन कर दिया है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) 'क' चरित्र के अनुसार भगवान् राजगृह से चम्पाकी तरफ विहार करते हैं जहां पृष्टचम्पा के राजा युवराज सालमहासाल की दीक्षा होती है। 'ख' चरित्र के मत से भगवान् क्षत्रियकुण्ड से कौशाम्बी की तरफ विचरते हैं । 'ग' चरित्र भी राजगृह सम्बन्धी अनेक घटनाओं का वर्णन करने के बाद भगवानको वहां से कौशाम्बी की तरफ विहार करवाता है । 'ख' 'ग' दोनों चरित्र कौशाम्बी में मृगावती तथा चण्डप्रद्योत की अंगारवती प्रमुख ८ परानियों की दीक्षा का वृत्तान्त वर्णन करते 1 (३) 'क' चरित्र सालमहासाल की दीक्षा के बाद कालान्तर में पृष्टचम्पा के राजा गागल, पिटर आदि की दीक्षा का प्रतिपादन करता है । 'ख' तथा 'ग' चरित्र कौशाम्बी से वाणिज्यग्राम की तरफ भगवान को विहार कराते हैं और एक ही सिलसिले में आनन्दादि दश ही श्रावकों के प्रतिबोध का निरूपण करते हैं । (४) 'क' चरित्र इसके बाद गौतम के अष्टापद गमन सम्बन्धी प्रसंग का वर्णन करता है । 'ख' और 'ग' फिर भगवान को कौशाम्बी की तरफ विहार कराते हैं, और सविमान सूर्यचन्द्र के उतरने की बात कहते हैं । (५) 'क' चरित्र के मत से गौतम के अष्टापद जाने के बाद भगवान् श्रावस्ती जाते हैं, और वहां गोशालक के साथ क्लेशप्रसंग उपस्थित होता है । 'ख' तथा 'ग' चरित्र के अनुसार भगवान् कौशाम्बी से श्रावस्ती जाते हैं; जहां गोशालक के साथ तकरार होती है । (६) गोशालकवाली तकरार, उस के बाद भगवान की बिमारी और उसकी निवृत्ति इन बातों के निरूपण में तीनों चरित्र एकमत हैं I फिर 'क' चरित्र मेघ, मृगावती, सुलसा, नन्द, उदायन, दशार्णभद्र, अतिमुक्तक, शालिभद्र, धन्य, आनन्द आदि के प्रतिबोध का निर्देश मात्र कर के अपनी कथा समेटता है, और भगवान् अपापापुरी पहुंचते हैं। For Private And Personal Use Only

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