Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti AhmedabadPage 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૧૯૯૩ મહાવીર-ચરિત્ર-સીમાંસા ૧૩૫ रुचिवैचित्र्य के कारण घटनाक्रम से कोई बात नहीं लिखी । केवलिजीवन के ३० चातुर्मास्यों में से अन्तिम चातुर्मास्य के सिवा शेष २९ चातुर्मास्य भगवान ने किस समय कहां कहां किये : किस चातुर्मास्य में क्या क्या महत्त्वपूर्ण घटनायें घटीं इत्यादि महत्त्वपूर्ण बातों के संबन्ध में उन्होंने एक शब्द भी नहीं लिखा। हां, केवलिजीवन से सम्बन्ध रखनेवाली अपनी पसन्दगा की कुछ घटनायें उन्होंने अपने चरित्रों में अवश्य लिख दी हैं, जिनमें कालक्रम का कोई खयाल नहीं रखा गया । ५ चरित्रों का केवलि-विहारक्रम भगवान के छद्मस्थ जीवन के संबन्ध में हमें कुछ भी नहीं कहना । क्योंकि इस विषय में सूत्र और चरित्र सभी लगभग एक मत हैं । मतभेद अथवा अनवस्था केवलि - जीवन के सम्बन्ध में ही है, अतः यहां हम केवलिविहार का ही विचार करेंगे । आजकल अधिक प्रसिद्ध और लभ्य महावीरचरित्र तीन हैं - १ला नेमिचन्द्रसूरिकृत प्राकृत महावीरचरित्र, २ रा गुणचन्द्रसूरिरचित प्राकृत महावीरचरित्र और ३ रा आचार्य हेमचन्द्रसूरिविरचित त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रान्तर्गत संस्कृत महावीरचरित्र । यहां हम उक्त तीनों चरित्रों में वर्णित भगवान के केवलि -विहार का कुछ विवरण देंगे ताकि हमारे कथन की वास्तविकता समझ में आ जायगी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 6 लाघवार्थ यहां हम उक्त चरित्रों का क्रमशः 'क' 'ख' और 'ग' चरित्र के नाम से उल्लेख करेंगे, पाठक महाशय इस 'परिभाषा' को लक्ष्य में रक्खें । (१) 'क' चरित्र के लेखानुसार भगवान् महावीर मध्यमा के महासेन उद्यान से विहार करते हुए राजगृह पहुंचे थे, जहां उनके उपदेश से राजा श्रेणिक और अभयकुमार क्रमशः सम्यग्दृष्टि और देशविरति श्रावक हुए થૈ 1 'ख' चरित्र के कथनानुसार महावीर महासेन से निकल कर विहार क्रमसे विचरते हुए ब्राह्मणकुण्ड तथा क्षत्रियकुण्ड पधारे थे और वहां ऋषभदत्त, देवानन्दा, जमालि और प्रियदर्शना आदि को दीक्षायें दी थीं । 1 'ग' चरित्र के वर्णनानुसार भगवान् मध्यमा के महासेन वन से विचरते हुए राजगृह की तरफ जाते हैं और वर्षों तक वहीं उपदेश करते हैं । सर्व प्रथम वहां नागरथिक और सुलसा को प्रतिबोध होता है । श्रेणिक - चेल्लना का विवाह भी उसी समय में होता है । अन्य अवसर पर भगवान् फिर राजगृह जाते हैं और मेघकुमार तथा कुछ समय के बाद नन्दोषेण को दीक्षा देते हैं। तीसरी बार आप राजगृह पधारते हैं तब चेलना के सती के संबन्धमें श्रेणिक पूछता है और भगवान् उसकी शंका का For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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