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१० जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश महावीर जब पावापुरके एक सुन्दर उद्यानमें पहुँचे, जो अनेक पद्म-सरोवरों तथा नाना प्रकारके वृक्षसमूहोंसे मंडित था, तब आप वहाँ कायोत्सर्गसे स्थित हो गये और आपने परम शुक्लध्यानके द्वारा योगनिरोध करके दग्धरग्जु-समान अवशिष्ट रहे कर्म-रजको-प्रघातिचतुष्टयको-भी अपने आत्मासे पृथक् कर डाला, और इस तरह कार्तिक वदि अमावस्याके दिनस, स्वाति नक्षत्रके समय, निर्वाण-पदको
___ धवल सिद्धान्तमें, "पच्छा पावारणयरे कत्तियमासे य किण्हचोद्दसिए । सादीए रत्तीए सेसरयं छेत्त रिणवायो॥" इस प्राचीन गाथाको प्रमाणमें उद्धृत करते हुए, कार्तिक बदि चतुर्दशीकी रात्रिको (पच्छिमभाए = पिछले पहरमे ) निर्वाणका होना लिखा है। साथ ही, केवलोत्पत्तिसे निर्वाण तकके समय २६ वर्ष ५ महीने २० दिनकी संगति ठीक बिठलाते हुए, यह भी प्रतिपादन किया है कि अमावस्याके दिन देवेद्रोंके द्वारा परिनिर्वाणपूजा की गई है वह दिन भी इस कालमें शामिल करने पर कार्तिकके १५ दिन होते है । यथा:-- ___"अमावसीए परिणिब्बाणपूजा सयलदेविदेहि कया ति तंपि दिवसमेत्थेव पक्खित्ते पण्णारस दिवमा होति ।" ___ इससे यह मालूम होता है कि निर्वाण अमावस्याको दिनके ममय तथा दिनके बाद रात्रिको नहीं हुआ, बल्कि चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम भागमें हुमा है जब कि अमावस्या आ गई थी और उसका सारा कृत्य---निरिणपूजा और देहसंस्कारादि---अमावस्याको ही प्रातःकाल प्रादिके समय भुगता है। इससे कार्तिककी अमावस्या आम तौर पर निर्वाणकी तिथि कहलाती है। और चकि वह रात्रि चतुर्दशीकी थी इसमे चतुर्दशीको निर्वाण कहना भी कुछ असंगत मालूम नहीं होता । महापुराणमें गुणभद्राचार्यने भी “कार्तिककृष्णपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये" इस वाक्यके द्वारा कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रिको उस समय निर्वाणका होना बतलाया है जबकि रात्रि समाप्तिके करीब थी। उसी रात्रिके अंधेरे में, जिसे जिनसेनने हरिवंशपुराणमें "कृष्णभूतसुप्रभातसन्ध्यासमये" पदके द्वारा उल्लेखित किया है, देवेन्द्रों द्वारा दीपावली प्रज्वलित करके निर्वाणपूजा किये जानेका उल्लेख है और वह पूजा धवलके उक्त वाक्यानुसार अमावस्याको की गई है। इससे चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम भागमें अमावस्या आ गई थी यह स्पष्ट जाना