Book Title: Jain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta
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जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश भगवान्का यह विहार-काल ही प्राय: उनका तीर्थ-प्रवर्तनकाल है, और इस तीर्थ-प्रवर्तनकी वजहसे ही वे 'तीर्थंकर' कहलाते हैं । मापके विहारका पहला स्टेशन राजगृहीके निकट विपुलाचल तथा वैभार पर्वतादि पंच पहाड़ियोंका प्रदेश जान पड़ता है जिसे धवल और जयधवल नामके सिद्धान्त ग्रन्थोंमें क्षेत्ररूपसे महावीरका अर्थकर्तृत्व प्ररूपण करते हुए, 'पंचशैलपुर' नामसे उल्लेखित किया है & । यहीं पर आपका प्रथम उपदेश हुमा है-केवलज्ञानोत्पत्तिके पश्चात् आपकी दिव्य वाणी खिरी है—और उस उपदेशके समयसे ही आपके तीर्थकी उत्पत्ति हुई है । राजगृहीमें उस वक्त राजा
* 'जयधवल' मे, महावीरके इस तीर्थप्रवर्तन और उनके आगमकी प्रमाणताका उल्लेख करते हुए, एक प्राचीन गाथाके आधार पर उन्हें 'निःसशयकर' (जगतके जीवोंके सन्देहको दूर करने वाले ), 'वीर' (ज्ञान-वचनादिकी सातिशय शक्तिसे सम्पन्न ), 'जिनोत्तम' ( जितेन्द्रियों तथा कर्मजेताओंमें श्रेष्ठ ), 'राग-द्वेषभयसे रहित' और 'धर्मतीर्थ-प्रवर्तक' लिखा है। यथा
रिणस्संसयकरो वीरो महावीरो जिणुत्तमो ।
राग-दोस-भयादीदो धम्मतित्थस्स कारपो ! + आप जृम्भका ग्रामके ऋजुकूला-तटमे चलकर पहले इसी प्रदेशमें आए हैं । इसीसे श्रीपूज्यपादाचार्यने आपकी केवलज्ञानोत्पत्तिके उस कथनके अनन्तर जो ऊपर दिया गया है आपके वैभार पर्वत पर पानेकी बात कही है और तभीसे आपके तीस वर्षके विहारकी गणना की है । यथा
“अथ भगवान्सम्प्रापद्दिव्यं वैभारपर्वतं रम्यं ।
चातुर्वर्ण्य सुसंघस्तत्राभूद् गौतमप्रभृति ॥१३॥ "दशविधमनगाराणामेकादशधोत्तरं तथा धर्म ।
देशयमानो व्यहरत् त्रिशद्वर्षाण्यथ जिनेन्द्रः ॥१५॥ -निर्वाणभक्ति । 88 पंचसेलपुरे रम्मे विउले पव्वदुत्तमे।
गाणादुमसमाइण्णे देवदाणववंदिदे ॥ महावीरेण (अ) त्यो कहियो भवियलोअस्स । यह तीर्थोत्पत्ति श्रावण-कृष्ण-प्रतिपदाको पूर्वाह ( सूर्योदय) के समय

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