Book Title: Jain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 17
________________ भ० महावीर और उनका समय MIT अर्थात् - देवोंका भागमन, श्राकाशमें गमन और चामरादिक (दिव्य चमर, छत्र, सिंहासन, भामंडलादिक ) विभूतियोंका अस्तित्व तो मायावियोंमें इन्द्रजालियोंमें — भी पाया जाता है, इनके कारण हम आपको महान् नहीं मानते और न इनकी वजहसे आपकी कोई खास महत्ता या बड़ाई ही है । भगवान् महावीरकी महत्ता और बड़ाई तो उनके मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय नामक कर्मोका नाश करके परमशान्तिको लिये हुए शुद्धि तथा शक्तिकी पराकाष्ठाको पहुँचने और ब्रह्मपथका - प्रहिंसात्मक मोक्षमार्गका — नेतृत्व ग्रहण करनेमें है— अथवा यों कहिये कि श्रात्मोद्धारके साथसाथ लोककी सच्ची सेवा बजाने में है । जैसा कि स्वामी समन्तभद्रके निम्न वाक्यसे भी प्रकट है : 1 त्वं शुद्धिशक्त्योरुदस्य काष्ठां तुलाव्यतीतां जिन शान्तिरूपाम् । वापि ब्रह्मपथस्य नेता महानितीयत् प्रतिवक्तुमीशाः ॥ ४ ॥ ——युक्त्यनुशासन महावीर भगवान्ने प्रायः तीस वर्ष तक लगातार अनेक देश-देशान्तरोंमें विहार करके सन्मार्गका उपदेश दिया, असंख्य प्राणियों के अज्ञानान्धकारको दूर करके उन्हें यथार्थ वस्तु-स्थितिका बोध कराया, तत्त्वार्थको समझाया, भूलें दूर कीं, भ्रम मिटाए, कमजोरियाँ हटाई, भय भगाया, आत्मविश्वास बढ़ाया, कदाग्रह दूर किया, पाखण्डबल घटाया, मिथ्यात्व छुड़ाया, पतितोंको उठाया, अन्यायअत्याचारको रोका, हिंसाका विरोध किया, साम्यवादको फैलाया और लोगोंको स्वावलम्बन तथा संयमकी शिक्षा दे कर उन्हें आत्मोत्कर्ष के मार्ग पर लगाया । इस तरह आपने लोकका अनन्त उपकार किया है और आपका यह विहार बड़ा ही उदार, प्रतापी एवं यशस्वी हुआ है । इसीसे स्वामी समन्तभद्रके स्वयंभूस्तोत्र में 'गिरिमित्यवदानवतः' इत्यादि पद्यके द्वारा इस विहारका यत्किचित् उल्लेख करते हुए, उसे “ऊर्जितं गतं " लिखा है । * ज्ञानावरण-दर्शनावरणके प्रभावसे निर्मल ज्ञान दर्शनकी प्राविभूतिका नाम 'शुद्धि' और अन्तराय कर्मके नाशसे वीर्यलब्धिका होना 'शक्ति' है और मानीय कर्मके प्रभावसे प्रतुलित सुखकी प्राप्तिका होना 'परमशान्ति' है ।

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