Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जैनेन्द्रव्याकरणरूपी महल में प्रवेश के लिये 'पञ्चवस्तु' को सोपान-पंक्ति स्वरूप बताया गया है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियां पूना के भांडारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट में हैं।
यह ग्रन्थ किसने रचा, इसका हस्तलिखित प्रतियों के आदि-अंत में कोई निर्देश नहीं मिलता। केवल एक जगह संधि-प्रकरण में 'संधि विधा कथयति श्रुतकीर्तिरार्यः' ऐसा लिखा है। इस उल्लेख से उसके कर्ता श्रुतकीर्ति आचार्य थे यह स्पष्ट होता है।
'नन्दीसंघ की पहावली' में 'विद्यः श्रुतकीाख्यो वैयाकरणभास्करः' इस प्रकार श्रुतकीर्ति को वैयाक भास्कर बताया गया है ।
श्रुतकीर्ति नामक अनेक आचार्य हुए हैं। उनमें से यह श्रुतकीर्ति कौन से हैं यह ढूढना मुश्किल है। कन्नड़ भाषा के 'चंद्रप्रभचरित' के कर्ता अग्गल कवि ने श्रुतकीर्ति को अपना गुरु बताया है : __ 'इदु परमपुरुनाथकुलभूभृत्समुद्भूतप्रवचनसरित्सरिनाथश्रुतकीर्ति विद्यचक्रवर्तिपदपद्मनिधानदीपवर्तिश्रीमदग्गलदेवविरचिते चन्द्रप्रभचरिते।'
यह ग्रन्थ शक सं० १०११ (वि० सं० ११४६) में रचा गया है। यदि आर्य श्रुतकीर्ति और श्रुतकीर्ति त्रैविद्यचक्रवर्ती एक ही हो तो 'पञ्चवस्तु' १२ वी शताब्दी के प्रारंभ में रची गई है ऐसा मानना चाहिये । लघु जैनेन्द्र (जैनेन्द्रव्याकरण-टीका):
दिगंबर जैन पंडित महाचन्द्र ने विक्रम की १२ वीं शताब्दी में जैनेन्द्रव्याकरण पर 'लघु जैनेन्द्र' नामक टीका की आचार्य अभयनन्दि की 'महावृत्ति' के आधार पर रचना की है। ७. सूत्रस्तम्भसमुद्धृतं प्रविलन्यासोरुरत्नक्षिति
श्रीमवृत्तिकपाटसंपुटयुतं भाष्योऽथ शय्यातलम् । टीकामालमिहारुरुक्षुरचितं जैनेन्द्रशब्दागर्म, प्रासादं पृथुपञ्चवस्तुकमिदं सोपानमारोहतात् ॥ महावृत्तिं शुम्भत् सकलबुधपूज्यां सुखकरों विलोक्योद्यद्ज्ञानप्रभुविभयनन्दीप्रवहिताम् । भनेकैः सच्छब्दैर्धमविगतकैः संदृढभूतां (1) प्रकुर्वेऽहं [ टीका ] तनुमतिर्महाचन्द्रविबुधः ॥
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