Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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ग्याकरण
५
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टीका:
__ 'सा० व्या०' पर तपागच्छीय उपाध्याय भानुचन्द्र के शिष्य देवचन्द्र ने श्लोकबद्ध टीका की रचना की है, जिसकी प्रति बीकानेर के श्री अगरचंदजी नाहटा के संग्रह में है। टीका:
__ 'सा० व्या०' पर यतीश नामक विद्वान् ने एक टीका रची है, ऐसा उल्लेख मुनि श्री चतुरविजयजी के 'जैनेतर साहित्य अने जैनो' लेख में है। यह टीकाग्रन्थ सहजकीर्तिरचित टीका हो, ऐसी संभावना है। वृत्ति:
'सारस्वत-व्याकरण' पर हर्षकीर्तिसूरि-रचित किसी वृत्ति का उल्लेख मुनि श्री चतुरविजयजी के 'जैनेतर साहित्य और जैन' लेख में है। इस वृत्ति का नाम शायद 'दीपिका' हो। चन्द्रिका :
'सारस्वत-व्याकरण' पर मुनि श्री मेघविजयजी ने 'चन्द्रिका' नामक टीका की रचना की है। समय निश्चित नहीं हैं। इसका उल्लेख पंजाब-भंडार-सूची भा. १' में है। पंचसंधि-बालावबोध :
'सारस्वतव्याकरण' पर उपाध्याय राजसी ने १८ वीं शताब्दी में 'पंचसंधिबालावबोध' नामक टीका की रचना की है। इसकी प्रति बीकानेर के खरतर आचार्य शाखा-भंडार में है। टीका:
'सारस्वत-व्याकरण' पर मुनि धनसागर ने 'धनसागरी' नामक टीका-ग्रन्थ की रचना की है, ऐसा उल्लेख 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' में है । भाषाटीका :
'सारस्वत-व्याकरण' पर मुनि आनन्दनिधान ने १८ वीं शताब्दी में भाषाटीका की रचना की है, जिसकी प्रति भीनासर के बहादुरमल बांठिया के संग्रह
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