Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
नाडीपरीक्षा: ___आचार्य पूज्यपाद ने 'नाडीपरीक्षा' नामक ग्रन्थ की रचना की है, ऐसा 'जिनरत्नकोश' पृ० २१० में उल्लेख है। यह कृति उनके किसी वैद्यक-ग्रन्थ के विभाग के रूप में भी हो सकती है। कल्याणकारक:
पूज्यपाद ने 'कल्याणकारक' नामक वैद्यक-ग्रंथ की रचना की थी। यह ग्रंथ अनुपलब्ध है । इसमें प्राणियों के देहज दोषों को नष्ट करने की विधि बतायी गई थी । ग्रन्थकार ने अपने ग्रंथ में जैन प्रक्रिया का ही अनुसरण किया था। जैन प्रक्रिया कुछ भिन्न है, जैसे—'सुतं केसरिगन्धकं मृगनवासारदुमम्'—यह रससिन्दूर तैयार करने का पाठ है। इसमें जैन तीर्थंकरों के भिन्न-भिन्न चिह्नों से परिभाषाएँ बतायी गई हैं। मृग से १६ का अर्थ लिया गया है क्योंकि सोलहवे तीर्थकर का लाञ्छन मृग है। मेरुदण्डतन्त्र :
गुम्मटदेव मुनि ने 'मेरुदण्डतंत्र' नामक वैद्यक-ग्रन्थ की रचना की है। इसमें उन्होंने पूज्यपाद के नाम का आदरपूर्वक उल्लेख किया है। योगरत्नमाला-वृत्ति:
नागार्जुन ने 'योगरत्नमाला' नामक वैद्यकग्रन्थ की रचना की है। उस पर गुणाकरसूरि ने वि० सं० १२९६ में वृत्ति रची है, ऐसा पिटर्सन की रिपोर्ट से ज्ञात होता है। अष्टाङ्गहृदय-वृत्तिः
वाग्भट नामक विद्वान् ने 'अष्टाङ्गहृदय' नामक वैद्य-विषयक प्रामाणिक ग्रन्थ रचा है। उस पर आशाधर नामक दिगम्बर जैन गृहस्थ विद्वान् ने 'उद्द्योत' वृत्ति की रचना की है। यह टीका-ग्रन्थ करीब वि० सं० १२९६ ( सन् १२४०) में लिखा गया है। पिटर्सन ने आशाधर के ग्रन्थों में इसका भी उल्लेख किया है। योगशत-वृत्ति:
वररुचि नामक विद्वान् ने 'योगशत' नामक वैद्यक-ग्रन्थ की रचना की है। उस पर पूर्णसेन ने वृत्ति रची है। इसमें सभी प्रकार के रोगों के औषध बताये गये हैं। १. पिटर्सन : रिपोर्ट ३, एपेण्डिक्स, पृ० ३३० और रिपोर्ट ४, पृ० २६.
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