Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 285
________________ २४४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास में सुलतानयुग के किसी भी फारसी या अन्य ग्रन्थकार ने ठक्कुर फेरू जितने तथ्य नहीं दिये, इसलिये इस ग्रंथ का विशेष महत्त्व है। कई रत्नों के उत्पत्तिस्थान फेरू ने १४ वीं शती का आयात-निर्यात स्वयं देखकर निश्चित किये हैं। रत्नों के तौल और मूल्य भी प्राचीन शास्त्रों के आधार पर नहीं, बल्कि अपने समय में प्रचलित व्यवहार के आधार पर बताये हैं । इस ग्रंथ में रत्नों के १. पद्मराग, २. मुक्ता, ३. विद्रुम, ४. मरकत, ५. पुखराज, ६. हीरा, ७. इन्द्रनील, ८. गोमेद और ९. वैडूर्य-ये नौ प्रकार गिनाए हैं (गाथा १४-१५) । इनके अतिरिक्त १०. लहसुनिया, ११. स्फटिक, १२. कर्केतन और १३. भीष्म नामक रत्नों का भी उल्लेख किया है; १४. लाल, १५. अकीक और १६. फिरोजा-ये पारसी रत्न हैं। इस प्रकार रत्नों की संख्या १६ है। इनमें भी महारत्न और उपरत्न-इन दो प्रकारों का निर्देश किया गया है । इन रत्नों का १. उत्पत्तिस्थान, २. आकर, ३. वर्ण-छाया, ४. जाति, ५. गुण-दोष, ६. फल और ७. मूल्य बताते हुए विजाति रत्नों का विस्तार से वर्णन किया है। ___ शूर्पारक, कलिंग, कोशल और महाराष्ट्र में वज्र नामक रत्न; सिंहल और ' तुंबर आदि देशों में मुक्ताफल और पद्मरागमणि; मलयपर्वत और बर्बर देश में मरकतमणि; सिंहल में इन्द्रनीलमणि; विंध्यपर्वत, चीन, महाचीन और नेपाल में विद्रुम; नेपाल, कश्मीर और चीन आदि में लहसुनिया, वैडूर्य और स्फटिक मिलते हैं। ___ अच्छे रत्न स्वास्थ्य, दीर्घजीवन, धन और गौरव देनेवाले होते हैं तथा सर्प, जंगली जानवर, पानी, आग, विद्युत्, घाव और बीमारी से मुक्त करते हैं। खराब रत्न दुःखदायक होते हैं । सूर्यग्रह के लिये 'मराग, चंद्रग्रह के लिये मोती, मंगलग्रह के लिये मूंगा, बुधग्रह के लिये पन्ना, गुरुग्रह के लिये पुखराज, शुक्रग्रह के लिये हीरा. शनिग्रह के लिये नीलम, राहुग्रह के लिये गोमेद और केतुग्रह के लिये वैडूर्य-इस प्रकार ग्रहों के अनुसार रत्न धारण करने से ग्रह पीड़ा नहीं देते। ___ रत्नों के परीक्षक को मांडलिक कहा जाता था और ये लोग रत्नों का परस्पर मिलान करके उनकी परीक्षा करते थे। पारसी रत्नों का विवरण तो फेल का अपना मौलिक है। पद्मराग के प्राचीन भेद गिनाये हैं उसमें चुन्नी' का प्रयोग किया है, जिसका व्यवहार जौहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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