Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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सत्ताईसवाँ प्रकरण प्राणिविज्ञान
आयुर्वेद में पशुपक्षियों की शरीररचना, स्वभाव, ऋतुचर्या, रोग और उनकी चिकित्सा के विषय में काफी लिखा गया है । 'अग्निपुराण' में गवायुर्वेद, गजचिकित्सा, अश्वचिकित्सा आदि प्रकरण हैं। पालकाप्य नामक विद्वान् का 'हस्तिआयुर्वेद' नामक एक प्राचीन ग्रन्थ है। नोलकंठ ने 'मातंगलीला' में हाथियों के लक्षण बड़ी अच्छी रीति से बताये हैं। जयदेव ने 'अश्ववैद्यक' नामक ग्रंथ में घोड़ों के लिये लिखा है । 'शालिहोत्र' नामक ग्रन्थ भी अश्वों के बारे में अच्छी जानकारी देता है। कुर्माचल ( कुमाऊं) के राजा रुद्रदेव ने 'श्यैनिकशास्त्र' नामक एक ग्रंथ लिखा है, जिसमें बाज पक्षियों का वर्णन किया गया है और उनके द्वारा शिकार करने की रीति बताई गई है । मृगपक्षिशास्त्र :
हंसदेव नामक जैन कवि ( ? यति ) ने १३ वीं शताब्दी में पशु-पक्षियों के 'प्रकार, स्वभाव इत्यादि पर प्रकाश डालनेवाले 'मृग-पक्षिशास्त्र' नामक सुंदर और विशिष्ट ग्रन्थ की रचना की है । इसमें अनुष्टुप छंद में १७०० श्लोक हैं ।
इस ग्रन्थ में पशु-पक्षियों के ३६ वर्ग बताए हैं। उनके रूप-रंग, प्रकार, स्वभाव, बाल्यावस्था, संभोगकाल, गर्भधारण-काल, खान-पान, आयुष्य और अन्य कई विशेषताओं का वर्णन किया है। सत्त्व-गुण पशु-पक्षियों में नहीं होता। उनमें रजोगुण और तमोगुण-ये दो ही गुण दीख पड़ते हैं। पशु-पक्षियों में भी उत्तम, मध्यम और अधम-ये तीन प्रकार बताये हैं। सिंह, हाथी, घोड़ा,
१. मद्रास के श्री राधवाचार्य को सबसे पहले इस ग्रंथ की हस्तलिखित प्रति
मिली थी। उन्होंने उसे त्रावनकोर के महाराजा को भेंट किया। डा. के. सी. वुड उसकी प्रतिलिपि करके अमेरिका ले गये। सन् १९२५ में श्री सुन्दराचार्य ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया। मूल ग्रन्थ अभी छपा नहीं है, ऐसा मालूम होता है।
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