Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास वाले चार चरणों से युक्त गायत्री से लेकर उत्कृति तक के २१ वर्गों में विभक्त करके विचार किया गया है।
इन अध्यायों में दिये गये ८५ वर्णवृत्तों में से २१ वर्णवृत्तों का निर्देश न तो पिंगल ने किया है और न केदार भट्ट ने ही। उसी प्रकार रत्नमञ्जूषाकार ने भी पिंगल के सोलह छन्दों का उल्लेख नहीं किया है। ___ पांचवें अध्याय के प्रारम्भ में समग्र वर्णवृत्तों को समान, प्रमाण और वितान-इन तीन वर्गों में विभक्त किया है, परन्तु अध्याय ५-७ में दिये गये समस्त वृत्त वितान वर्ग के हैं। इस प्रकार २१ वर्गों के वृत्तों का ऐसा विभाजन किसी अन्य छन्द-ग्रंथ में नहीं है, यही इस ग्रंथ की विशेषता है।
आठवें अध्याय में १. प्रस्तार, २. नष्ट, ३. उद्दिष्ट, ४. लगक्रिया, ५. संख्यान और ६. अध्वन्-इस तरह छः प्रकार के प्रत्ययों का निरूपण है। रत्नमञ्जूषा-भाष्य : ___'रत्नमञ्जूषा' पर वृत्तिरूप भाष्य मिलता है, परन्तु इसके कर्ता कौन थे यह अज्ञात है। इसमें दिये गये मंगलाचरण और उदाहरणों से भाष्यकार का जैन होना प्रमाणित होता है।
इसमें दिये गये ८५ उदाहरणों में से ४० तो उन-उन छन्दों के नामसूचक हैं। इससे यह कह सकते हैं कि छंदों के यथावत् ज्ञान के लिये भाष्य की रचना के समय भाष्यकार ने ही उदाहरणों की रचना की हो और छन्दों के नामरहित कई उदाहरण अन्य कृतिकारों के हों । __इसमें 'अभिज्ञानशाकुन्तल' (अंक १, श्लोक ३३), 'प्रतिशायौगन्धरायण' (२, ३) इत्यादि के पद्य उद्धृत किये गये हैं। भाष्य में तीन स्थानों पर सूत्रकार का 'आचार्य' कहकर निर्देश किया गया है। ___अध्याय ८ के अंतिम उदाहरण में निर्दिष्ट 'एकच्छन्दसि खण्डमेरुरमलः पुनागचन्द्रोदितः' वाक्य से मालूम होता है कि इसके कर्ता शायद पुन्नागचंद्र या नागचंद्र हों। धनञ्जय कविरचित 'विषापहारस्तोत्र' के टीकाकार का नाम भी नागचंद्र है। वही तो इसके कर्ता नहीं हैं ? अन्य प्रमाणों के अभाव में कुछ कहा नहीं जा सकता। छन्दःशास्त्र:
बुद्धिसागरसूरि (१' वीं शती) ने 'छन्दःशास्त्र' की रचना की, ऐसा उल्लेख वि० सं० ११३९ में गुणचंद्रसूरिरचित 'महावीरचरिय' की प्रशस्ति में है।
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