Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास वृत्तमौक्तिक: ___ उपाध्याय मेघविजय ने छन्द-विषयक 'वृत्तमौक्तिक' नामक ग्रंथ की रचना संस्कृत में की है। इसकी १० पत्रों की प्रति मिलती है ।' उपाध्यायजी ने व्याकरण, काव्य, ज्योतिष, सामुद्रिक, रमल, यंत्र, दर्शन और अध्यात्म आदि विषयों पर अनेक ग्रन्थों की रचना की है, जिनसे उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा का परिचय मिलता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में ग्रंथकार ने प्रस्तार-संख्या, उद्दिष्ट, नष्ट आदि का विशद वर्णन किया है। विषय को स्पष्ट करने के लिये यंत्र भी दिये गए हैं। यह ग्रंथ वि० सं० १७५५ में मुनि भानुविजय के अध्ययनार्थ रचा गया है। छन्दोवतंस :
'छन्दोऽवतंस' नामक ग्रंथ के कर्ता उपाध्याय लालचंद्रगणि हैं, जो शांतिहर्षवाचक के शिष्य थे। इन्होंने वि० सं० १७७१ में इस ग्रंथ की रचना की ।'
यह कृति संस्कृत भाषा में है। इन्होंने केदारभट्ट के 'वृत्तरत्नाकर' का अनुसरण किया है परंतु उसमें से अति उपयोगी छन्दों पर ही विशद शैली में विवेचन किया है।
कवि लालचन्द्रगणि ने अपनी रचना में नम्रता प्रदर्शित करते हुए विद्वानों से ग्रंथ में रही हुई त्रुटियों को शुद्ध करने की प्रार्थना की है। प्रस्तारविमलेन्दु ___ मुनि बिहारी ने 'प्रस्तारविमलेन्दु' नामक छन्द-विषयक ग्रन्थ की रचना की है।
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१. जैन सत्यप्रकाश, वर्ष १२, अंक ५-६. २. 'प्रस्तारपिण्डसंख्येयं विवृता वृतमौक्तिके ॥ ३. समित्यर्थाश्व-भू ( १७५५) वर्षे प्रौढिरेषाऽभवत् श्रिये ।
भान्वादिविजयाध्यायहेतुतः सिद्धिमाश्रितः ॥ ४. तत् सर्व गुरुराजवाचकवरश्रीशान्तिहर्षप्रभोः ।
शिष्यस्तस्कृपया व्यधत्त सुगम श्रीलालचन्द्रो गणिः ॥ ५. विक्रमराज्यात् शशि-हय-भूधर-दशवाजिभि (१७७१) मिते वर्षे ।
माधवसिततृतीयायां रचितः छन्दोऽवतंसोऽयम् ॥ ६. कचित् प्रमादाद् वितथं मयाऽमिश्छन्दोवसंसे स्वकृते यदुकम् ।
संशोध्य तधिर्मलयन्तु सन्तो विद्वत्सु विज्ञप्तिरियं मदीया ॥
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