Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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ज्योतिष
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यह ग्रन्थ पाँच अध्यायों में विभक्त है : १. गणिताध्याय, २. यन्त्रघटनाध्याय, ३. यन्त्ररचनाध्याय, ४. यन्त्रशोधनाध्याय और ५. यन्त्रविचारणाध्याय । इसमें कुल मिलाकर १८२ पद्य हैं।
इस ग्रन्थ की अनेक विशेषताएँ हैं। इसमें नाडीवृत्त के धरातल में गोलपृष्ठस्थ सभी वृत्तों का परिणमन बताया गया है । क्रमोत्क्रमज्यानयन, भुजकोटिज्या का चापसाधन, क्रान्तिसाधन, धुंज्याखंडसाधन, धुज्याफलानयन, सौम्य यन्त्र के विभिन्न गणित के साधन, अक्षांश से उन्नतांश साधन, ग्रन्थ के नक्षत्र, ध्रुव आदि से अभीष्ट वर्षों के ध्रुवादि साधन, नक्षत्रों का दृकर्मसाधन, द्वादश राशियों के विभिन्न वृत्तसम्बन्धी गणित के साधन, इष्ट शंकु से छायाकरणसाधन, यन्त्रशोधनप्रकार और तदनुसार विभिन्न राशियों और नक्षत्रों के गणित के साधन, द्वादशभावों और नवग्रहों के गणित के स्पष्टीकरण का गणित और विभिन्न यन्त्रों द्वारा सभी ग्रहों के साधन का गणित अतीव सुन्दर रीति से प्रतिपादित किया गया है। इस ग्रन्थ के ज्ञान से बहुत सरलता से पंचांग बनाया जा सकता है। यन्त्रराज-टीका :
'यन्त्रराज" पर आचार्य महेन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य मलयेन्दुसूरि ने टीका लिखी है। इन्होंने मूल ग्रन्थ में निर्दिष्ट यन्त्रों को उदाहरणपूर्वक समझाया है। इसमें ७५ नगरों के अक्षांश दिये गये हैं । वेधोपयोगी ३२ तारों के सायन भोगशर भी दिये गये हैं । अयनवर्षगति ५४ विकला मानी गई है। ज्योतिष्रत्नाकर
मुनि लब्धिविजय के शिष्य महिमोदय मुनि ने 'ज्योतिष्रत्नाकर' नामक कृति की रचना की है। मुनि महिमोदय वि० सं० १७२२ में विद्यमान थे। वे गणित और फलित दोनों प्रकार की ज्योतिर्विद्या के मर्मज्ञ विद्वान् थे ।
यह ग्रंथ फलित ज्योतिष का है। इसमें संहिता, मुहूर्त और जातक-इन तीन विषयों पर प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी अत्यन्त उपयोगी है । यह प्रकाशित नहीं हुआ है।
1. यह ग्रंथ राजस्थान प्राच्यविद्या शोध-संस्थान, जोधपुर से टीका के साथ
प्रकाशित हुआ है। सुधाकर द्विवेदी ने यह ग्रंथ काशी से छपवाया है। यह बंबई से भी छपा है।
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