Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उसके बाद तिथि, वार के २७ चक्रों की जानकारी और हाथ के वर्ण आदि का वर्णन है। । दूसरे स्पर्शन अधिकार में हाथ में आठ निमित्त किस प्रकार घट सकते हैं, यह बताया गया है जिससे शकुन, शकुनशलाका, पाशककेवली आदि का विचार किया जाता है। चूडामणि-शास्त्र का भी यहाँ उल्लेख है। __ तीसरे अधिकार में न-भिन्न रेखाओं का वर्णन है । आयुष्य, संतान, स्त्री, भाग्योदय, जीवन की मुख्य घटनाओं और सांसारिक सुखों के बारे में गवेषणापूर्वक ज्ञान कराया गया है।
चतुर्थ अधिकार में विश्वा-लंबाई, नाखून, आवर्तन के लक्षण, स्त्रियों की रेखाएँ, पुरुष के बायें हाथ का वर्णन आदि बातें हैं।' हस्तसंजीवन-टीका : ___'हस्तसंजीवन' पर उपाध्याय मेघविजयजी ने वि० सं० १७३५ में 'सामुद्रिकलहरी' नाम से ३८०० श्लोक-प्रमाण खोपज्ञ टीका की रचना की है। कर्ता ने यह ग्रन्थ जीवराम कवि के आग्रह से रचा है।
इस टीकाग्रन्थ में सामुद्रिक-भूषण, शैव-सामुद्रिक आदि ग्रन्थों का परिचय दिया है। इसमें खास करके ४३ ग्रन्थों की साक्षी है । हस्तबिम्ब, हस्तचिह्नसूत्र, कररेहापयरण, विवेकविलास आदि ग्रन्थों का उपयोग किया है। अङ्गविद्याशास्त्र
किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने 'अंगविद्याशास्त्र' नामक ग्रंथ की रचना की है । ग्रंथ अपूर्ण है । ४४ श्लोक तक ग्रन्थ प्राप्त हुआ है। इसकी टीका भी रची गई है परन्तु यह पता नहीं कि वह ग्रन्थकार की स्वोपज्ञ है या किसी अन्य विद्वान् द्वारा रचित है। ग्रंथ. जैनाचार्यरचित मालूम होता है। यह 'अंगविजा' के अन्त में सटीक छपा है। ___ इस ग्रन्थ में अशुभस्थानप्रदर्शन, पुंसंज्ञक अंग, स्त्रीसंज्ञक अंग, भिन्न-भिन्न फलनिदेश, चौरज्ञान, अपहृत वस्तु का लाभालाभज्ञान, पीडित का मरणज्ञान, भोजनशान, गर्भिणीज्ञान, गर्भग्रहण में कालज्ञान, गर्भिणी को किस नक्षत्र में सन्तान का जन्म होगा-इन सब विषयों पर विवेचन है।
१. यह ग्रन्थ सटीक मोहनलालजी ग्रन्थमाला, इंदौर से प्रकाशित हुमा है।
मूल प्रन्थ गुजराती भनुवाद के साथ साराभाई नवाब, अहमदाबाद ने भी प्रकाशित किया है।
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