Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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दसवाँ प्रकरण
शकुन
शकुनरहस्य :
वि० सं० १२७० में 'विवेकविलास' की रचना करनेवाले वायडगच्छीय जिनदत्तसूरि ने 'शकुनरहस्य' नामक शकुनशास्त्रविषयक ग्रंथ की रचना की है। आचार्य जिनदत्तसूरि 'कविशिक्षा' नामक ग्रंथ की रचना करनेवाले आचार्य अमरचन्द्रसूरि के गुरु थे।
'शकुनरहस्य' नौ प्रस्तावों में विभक्त पद्यात्मक कृति है। इसमें संतान के जन्म, लग्न और शयनसंबंधी शकुन, प्रभात में जाग्रत होने के समय के शकुन, दतून और स्नान करने के शकुन, परदेश जाने के समय के शकुन और नगर में प्रवेश करने के शकुन, वर्षा-संबंधी परीक्षा, वस्तु के मूल्य में वृद्धि और कमी, मकान बनाने के लिये जमीन की परीक्षा, जमीन खोदते हुए निकली हुई वस्तुओं का फल, स्त्री को गर्भ नहीं रहने का कारण, संतानों की अपमृत्युविषयक चर्चा, मोती, हीरा आदि रत्नों के प्रकार और तदनुसार उनके शुभाशुभ फल आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।'
शकुनशास्त्र
'शकुनशास्त्र', जिसका दूसरा नाम 'शकुनसारोद्धार' है, की वि० सं० १३३८ में आचार्य माणिक्यसूरि ने रचना की है। इस ग्रंथ में १. दिकस्थान, २. ग्राम्यनिमित्त, ३. तित्तिरि, ४. दुर्गा, ५. लद्वागृहोलिकाक्षुत, ६. वृक, ७. रात्रेय
१. पं० हीरालाल हंसराज ने सानुवाद 'शकुनरहस्य' का 'शकुनशास्त्र' नाम से
सन् १८९९ में जामनगर से प्रकाशन किया है। सारं गरीयः शकुनार्णवेभ्यः पीयूषमेतद् रचयांचकार । माणिक्यसूरिः स्वगुरुप्रसादायत्पानतः स्याद् विबुधप्रमोदः॥ ४ ॥ वसु-वह्नि-वहि-चन्द्रेऽन्दे श्वकयुजि पूर्णिमातियो रचितः । शकुनानामुद्वारोऽभ्यासवशादस्त चिपः ॥४२॥
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