Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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चौदहवां प्रकरण सामुद्रिक
अंगविज्जा ( अङ्गविद्या):
'अंगविजा' एक अज्ञातकर्तृक रचना है। यह फलादेश का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, जो सांस्कृतिक सामग्री से भरपूर है। 'अंगविद्या का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। यह लोक प्रचलित विद्या थी, जिससे शरीर के लक्षणों को देखकर अथवा अन्य प्रकार के निमित्त या भनुष्य की विविध चेष्टाओं द्वारा शुभ-अशुभ फलों का विचार किया जाता था। 'अंगविद्या के अनुसार अंग, स्वर, लक्षण, व्यञ्जन, स्वप्न, छीक, भौम और अंतरिक्ष-ये आठ निमित्त के आधार हैं और इन आठ महानिमित्तों द्वारा भूत, भविष्य का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
यह 'अंगविजा' पूर्वाचार्य द्वारा गद्य-पद्यमिश्रित प्राकृत भाषा में प्रणीत है जो नवीं-दसवीं शताब्दी के पूर्व का ग्रन्थ है । इसमें ६० अध्याय हैं। आरंभ में अंगविद्या की प्रशंसा की गई है और उसके द्वारा सुखदुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, सुभिक्ष-दुर्भिक्ष, जीवन-मरण आदि बातों का ज्ञान होना बताया गया है। ३० पटलों में विभक्त आठवें अध्याय में आसनों के अनेक भेद बताये गये हैं। नौवें अध्याय में १८६८ गाथाएँ हैं, जिनमें २७० विषयों का निरूपण है। इन विषयों में अनेक प्रकार की शय्या, आसन, यान, कुड्य, खंभ, वृक्ष, वस्त्र, आभूषण, बर्तन, सिक्के आदि का वर्णन है । ग्यारहवें अध्याय में स्थापत्यसंबंधी विषयों का महत्त्वपूर्ण वर्णन करते हुए तत्संबंधी शब्दों की विस्तृत सूची दी गई है । उन्नीसवें अय में राजोपजीवी शिल्पी और उनके उपकरणों के संबंध में उल्लेख है। इक्कीसवां अध्याय
१. 'पिंडनियुक्ति-टीका' (४०८) में 'अंगविज्जा' की निम्नलिखित गाथा उद्धृत है:
इंदिएहिं दियत्थेहि समाधानं च अप्पणो । नाणं पवत्तए जम्हा निमित्तं तेण माहियं ॥
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