Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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'श्रुतबोध' में आठ गणों एवं गुरु लघु वर्गों के लक्षण बताकर आर्या आदि छंदों से प्रारंभ कर यति का निर्देश करते हुए समवृत्तों के लक्षण बताये गये हैं।
इस कृति पर जैन लेखकों ने निम्नोक्त टीकाओं की रचना की है :
१. नागपुरी तपागच्छ के चन्द्रकीर्तिसूरि के शिष्य हर्षकीर्तिसूरि ने विक्रम की १७ वीं शताब्दी में वृत्ति की रचना की है। टीका के अन्त में वृत्तिकार ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है : . श्रीमन्नागपुरीयपूर्वकतपागच्छाम्बुजाहस्कराः
सूरीन्द्राः [चन्द्र ]कीर्तिगुरवो विश्वत्रयीविश्रुताः । तत्पादाम्बुरुहप्रसादपदतः श्रीहर्षकीाह्वयो
पाध्यायः श्रुतबोधवृत्तिमकरोद् बालावबोधाय वै ।। २. नयविमलसूरि ने वि० १७ वीं शताब्दी में वृत्ति की रचना की है। ३. वाचक मेघचन्द्र के शिष्य ने वृत्ति रची है। ४. मुनि कांतिविजय ने वृत्ति बनाई है। ५. माणिक्यमल्ल ने वृत्ति का निर्माण किया है।
वृत्तरत्नाकर-शैव शास्त्रों के विद्वान् पब्वेक के पुत्र केदार भट्ट ने संस्कृत पद्यों में 'वृत्तरत्नाकर' की रचना सन् १००० के आस-पास में की है। इसमें कर्ता ने छंद-विषयक उपयोगी सामग्री दी है । यह कृति १. संज्ञा, २. मात्रावृत्त, ३. समवृत्त, ४. अर्धसमवृत्त, ५. विषमवृत्त और ६. प्रस्तार-इन छः अध्यायों में विभक्त है।
इस पर जैन लेखकों ने निम्नलिखित टीकाएँ लिखी हैं :
१. आसड नामक कवि 'वृत्तरत्नाकर' पर 'उपाध्यायनिरपेक्षा' नामक वृत्ति की रचना की है। आसड की नवरसभरी काव्यवाणी को सुनकर राज. सभ्यों ने इन्हें 'सभाएंगार' की पदवी से अलंकृत किया था। इन्होंने 'मेघदूत' काव्य पर सुन्दर टीका ग्रन्थ की रचना की थी। प्राकृत भाषा में 'विवेकमञ्जरी'
और 'उपदेशकन्दली' नामक दो प्रकरणग्रन्थ भी रचे थे। ये वि० सं० १२४८ में विद्यमान थे।
२. वादी देवसूरि के संतानीय जयमंगलसूरि के शिष्य सोमचन्द्रगणि ने १. इस टीका की एक हस्तलिखित ७ पत्रों की प्रति अहमदाबाद के __लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है। २. वेदार्थशैवशास्त्रज्ञः पब्वेकोऽभूद् द्विजोत्तमः।
तस्य पुत्रोऽस्ति केदारः शिवपादार्चने रतः ॥
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