Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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पाँचवाँ प्रकरण
नाट्य
दुःखी, शोकात, श्रांत एवं तपस्वी व्यक्तियों को विश्रांति देने के लिये नाट्य की सृष्टि की गई है। सुख-दुःख से युक्त लोक का स्वभाव ही आंगिक, वाचिक इत्यादि अभिनयों से युक्त होने पर नाट्य कहलाता है :
योऽयं स्वभावो लोकस्य सुख-दुःख समन्वितः । सोऽङ्गाद्यभिनयोपेतो नाट्यमित्यमिधीयते ।।
नाट्यदर्पण :
कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि के दो शिष्यों कविकटारमल विरुदधारक रामचन्द्रसूरि और उनके गुरुभाई गुणचंद्रगणि ने मिलकर 'नाट्यदर्पण' की रचना वि० सं० १२०० के आसपास में की।
'नाट्यदर्पण' में चार विवेक हैं जिनमें सब मिलाकर २०७ पद्य हैं।
प्रथम- विवेक 'नाटकनिर्णय' में नाटकसंबंधी सब बातों का निरूपण है। इसमें १. नाटक, . प्रकरण, ३. नाटिका, ४. प्रकरणी, ५. व्यायोग, ६. समवकार, ७. भाण, ८. प्रहसन, ९. डिम, १०. अंक, ११. इहामृग और १२. वीथिये बारह प्रकार के रूपक बताये गये हैं। पांच अवस्थाओं और पाँच संधियों का भी उल्लेख है ।
द्वितीय विवेक 'प्रकरणायेकादशनिर्णय' में प्रकरण से लेकर वीथि तक के ११ रूपकों का वर्णन है।
तृतीय विवेक 'वृत्ति-रस-भावाभिनयविचार' में चार वृत्तियों, नव रसों, नव स्थायी भावों, तैंतीस व्यभिचारी भावों, रस आदि आठ अनुभावों और चार अभिनयों का निरूपण है। ___चतुर्थ विवेक 'सर्वरूपकसाधारणलक्षणनिर्णय' में सभी रूपकों के लक्षण बताये गये हैं।
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