Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
विवाहपडल ( विवाहपटल ) :
'विवाह पडल' के कर्ता- अज्ञात हैं । यह प्राकृत में रचित एक ज्योतिष-विषयक ग्रंथ है, जो विवाह के समय काम में आता है। इसका उल्लेख 'निशीथविशेषचूर्ण' में मिलता है ।
लग्गसुद्धि (लग्नशुद्धि ) :
'लग्गसुद्धि' नामक ग्रंथ के कर्ता याकिनी - महत्तरासूनु हरिभद्रसूरि माने जाते हैं । परन्तु यह संदिग्ध मालूम होता है । यह 'लग्नकुण्डलिका' नाम से प्रसिद्ध है । प्राकृत की कुल १३३ गाथाओं में गोचरशुद्धि, प्रतिद्वारदशक, मास-वारतिथि-नक्षत्र योगशुद्धि, सुगणदिन, रजछन्नद्वार, संक्रांति, कर्कयोग, वार-नक्षत्रअशुभयोग, सुगणार्श्वद्वार, होरा, नवांश, द्वादशांश, षड्वर्गशुद्धि, उदयास्तशुद्धि इत्यादि विषयों पर चर्चा की गई है । '
दिसुद्धि ( दिनशुद्धि ) :
पंद्रहवीं शती में विद्यमान रत्नशेखरसूरि ने 'दिनशुद्धि' नामक ग्रंथ की प्राकृत में रचना की है। इसमें १४४ गाथाएँ हैं, जिनमें रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि का वर्णन करते हुए तिथि, लग्न, प्रहर, दिशा और नक्षत्र की शुद्धि बताई गई है । '
कालसंहिता :
'कालसंहिता' नामक कृति आचार्य कालक ने रची थी, ऐसा उल्लेख मिलता है । वराहमिहिरकृत 'बृहजातक' ( १६. १ ) की उत्पलकृत टीका में बंकालकाचार्यकृत 'बंकालकसंहिता' से दो प्राकृत पद्य उद्धृत किये गये हैं । 'कालक संहिता' नाम अशुद्ध प्रतीत होता है । यह 'कालकसंहिता' होनी चाहिए, ऐसा अनुमान होता है । यह ग्रंथ अनुपलब्ध है ।
काल सूरि ने किसी निमित्तग्रंथ का निर्माण किया था, यह निम्न उल्लेख से ज्ञात होता है :
१. यह ग्रन्थ उपाध्याय क्षमाविजयजी द्वारा संपादित होकर शाह मूलचंद बुलाखीदास की ओर से सन् १९३८ में बम्बई से प्रकाशित हुआ है ।
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२. यह ग्रंथ उपाध्याय क्षमाविजयजी द्वारा संपादित बुलाखीदास, बम्बई की ओर से सन् १९३८ में प्रकाशित
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