Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यह ग्रंथ छोटा होते हुए भी महत्त्वपूर्ण है । इसमें ३६ द्वार ( प्रकरण ) हैं : १. ग्रहों के अधिप, २. ग्रहों की उच्च-नीच स्थिति, ३. परस्परमित्रता, ४. राहुविचार, ५. केतुविचार, ६. ग्रहचक्रों का स्वरूप, ७. बारह भाव, ८. अभीष्ट कालनिर्णय, ९. लग्नविचार, १०. विनष्ट ग्रह, ११. चार प्रकार के राजयोग, १२. लाभविचार, १३. लाभफल, १४. गर्भ की क्षेमकुशलता, १५. श्रीगर्भ - प्रसूति, १६. दो संतानों का योग, १७. गर्भ के महीने, १८. भार्या, १९. विषकन्या, २०. भावों के ग्रह, २१. विवाहविचारणा, २२. विवाद, २३. मिश्रपद निर्णय, २४. पृच्छानिर्णय, २५. प्रवासी का गमनागमन, २६. मृत्युयोग, २७. दुर्गभंग, २८. चौर्यस्थान, २९. अर्घज्ञान, ३०. मरण, ३१. लाभोदय, ३२. लग्न का मासफल, ३३. काफल, ३४. दोषज्ञान, ३५. राजाओं की दिनचर्या, ३६. इस गर्भ में क्या होगा ? इस प्रकार कुल १७० श्लोकों में ज्योतिषविषयक अनेक विषयों पर विचार किया गया है ।
१. भुवनदीपक वृत्ति :
'भुवनदीपक' पर आचार्य सिंहतिलकसूरि ने वि० सं० १३२६ में १७०० श्लोक-प्रमाण वृत्ति की रचना की है। सिंहतिलकसूरि ज्योतिष् शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् थे । इन्होंने श्रीपति के 'गणिततिलक' पर भी एक महत्त्वपूर्ण टीका लिखी है ।
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सिंहतिलकसूरि विबुधचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने वर्धमानविद्याकल्प, मंत्रराजरहस्य आदि ग्रंथों की रचना की है ।
२. भुवनदीपक वृत्ति :
मुनि मतिलक ने 'भुवनदीपक' पर एक वृत्ति रची है। समय अज्ञात है । ३. भुवनदीपक-वृत्ति :
दैवज्ञ शिरोमणि ने 'भुवनदीपक' पर एक विवरणात्मक वृत्ति की रचना की है । समय ज्ञात नहीं है । ये टीकाकार जैनेतर हैं ।
४. भुवनदीपक वृत्ति :
किसी अज्ञात नामा जैन मुनि ने 'भुवनदीपक' पर एक वृत्ति रची है । समय भी अज्ञात है ।
ऋषिपुत्र की कृति :
गर्गाचार्य के पुत्र और शिष्य ने निमित्तशास्त्रसंबंधी किसी ग्रंथ का निर्माण किया है। ग्रंथ प्राप्य नहीं है । कई विद्वानों के मत से उनका समय देवल के
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