Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
छन्द
१४३
जयदेव ने अध्यायों का आरंभ ही नहीं, उनकी समाप्ति भी पिंगल की तरह ही की है। वैदिक छन्दों के लक्षण सूत्ररूप में ही दिये हैं, परन्तु लौकिक छन्दों के निरूपण की शैली पिंगल से भिन्न है। इन्होंने छन्दों के लक्षण, जिनके वे लक्षण हैं, उनको छन्दों के पाद में ही बताये हैं, इस कारण लक्षण भी उदाहरणों का काम देते हैं। इस शैली का अवलंबन जयदेव के परवर्ती कई छन्दों के लक्षणकारों ने किया है। जयदेवछन्दोवृत्ति
मुकुल भट्ट के पुत्र हर्षट ने 'जयदेवछन्दस्' पर वृत्ति की रचना की है। यह वृत्ति जैन विद्वानों के रचित ग्रन्थों पर जैनेतर विद्वानों द्वारा रचित वृत्तियों में से एक है।
काव्यप्रकाशकार मम्मट ने 'अभिधावृत्ति-मातृका' के कर्ता मुकुल भट्ट का उल्लेख किया है। उनका समय सन् ९२५ के आस-पास है। सम्भवतः १ मुकुल भट्ट का पुत्र ही यह हर्षट है। ___ हर्षटरचित वृत्ति की हस्तलिखित प्रति सन् ११२४ की मिली है इससे वे उस समय से पूर्व हुए, यह निश्चित है ।
टकारांत नाम से अनुमान होता है कि ये कश्मीरी विद्वान् होंगे। जयदेवछन्दःशास्त्रवृत्ति-टिप्पनक:
शीलभद्रसूरि के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने वि० १३ वीं शताब्दी में जयदेवकृत छन्दःशास्त्र की वृत्ति पर टिप्पन की रचना की है। यह टिप्पन किस विद्वान् की वृत्ति पर है, यह ज्ञात नहीं हुआ है। शायद हर्षट की दृत्ति पर ही यह टिप्पन हो । श्रीचन्द्रसूरि का आचार्यावस्था के पूर्व पार्श्वदेवगणि नाम था, ऐसा उन्होंने 'न्यायप्रवेशपञ्जिका' की अन्तिम पुष्पिका में निर्देश किया है।
इनके अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं:
१. यह ग्रन्थ हर्षट की टीका के साथ 'जयदामन्' नामक छन्दों के संग्रह-ग्रंथ
में हरितोषमाला ग्रंथावली, बम्बई से सन् १९४९ में प्रो० वेलणकर द्वारा संपादित होकर प्रकाशित हुभा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org