Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
एकाक्षरी-नानार्थकाण्ड:
दिगम्बर धरसेनाचार्य ने 'एकाक्षरी नानार्थकाण्ड' नामक कोश को भी रचना की है। इसमें ३५ पद्य हैं। क से लेकर च पर्यंत वर्णों का अर्थ-निर्देश प्रथम २८ पद्यों में है और स्वरों का अर्थ-निर्देश बाद के ७ पद्यों में है। एकाक्षरनाममालिका :
अमरचन्द्रसूरि ने 'एकाक्षरनाममालिका' नामक कोश-ग्रंथ की रचना १३ वीं शताब्दी में की है। इस कोश के प्रथम पद्य में कर्ता ने अमर कवीन्द्र नाम दर्शाया है और सूचित किया है कि विश्वाभिधानकोशों का अवलोकन करके इस 'एकाक्षरनाममालिका' की रचना की है। इसमें २१ पद्य हैं ।
अमरचन्द्रसूरि ने गुजरात के राजा विसलदेव की राजसभा को विभूषित किया था। इन्होंने अपनी शीघ्रकवित्वशक्ति से संस्कृत में काव्य-समस्यापूर्ति करके समकालीन कविसमाज में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया था ।
इनके अन्य ग्रन्थ इस प्रकार है : १. बालभारत, २. काव्यकल्पलता (कविशिक्षा), ३. पद्मानन्द-महाकाव्य,
४. स्यादिशब्दसमुच्चय । एकाक्षरकोश :
महाक्षपणक ने 'एकाक्षरकोश' नाम से ग्रंथ की रचना की है। कवि ने प्रारम्भ में ही आगमों, अभिधानों, धातुओं और शब्दशासन से यह एकाक्षरनामाभिधान किया है । ४१ पद्यों में क से क्ष तक के व्यञ्जनों के अर्थप्रतिपादन के बाद स्वरों के अर्थों का दिग्दर्शन किया है। ___एक प्रति में कर्ता के सम्बन्ध में इस प्रकार पाठ मिलता है : एकाक्षरार्थः संलापः स्मृतः क्षपणकादिभिः। इस प्रकार नाम के अलावा इस ग्रन्थकार के बारे में कोई परिचय प्राप्त नहीं होता। यह कोश-ग्रंथ प्रकाशित है।
१. पं. नन्दलाल शर्मा की भाषा-टीका के साथ सन् १९१२ में भाकलूज
निवासी नाथारंगजी गांधी द्वारा यह अनेकार्थकोश प्रकाशित किया
गया है। २. एकाक्षरनाम-कोषसंग्रह : संपादक-पं० मुनि श्री रमणीकविजयजी, प्रकाशक
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, वि० सं० २०२१.
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