Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
अलङ्कार
उल्लेख किया गया है । इससे मालूम होता है कि आचार्य रविप्रभसूरि ने अलंकारसम्बन्धी किसी ग्रन्थ की रचना की होगी, जो आज उपलब्ध नहीं है । काव्यशिक्षा में ८४ देशों के नाम, राजा भोज द्वारा जीते हुए देशों के नाम, कवियों की प्रौढ़ोक्तियों से उत्पन्न उपमाएँ और लोक व्यवहार के ज्ञान का भी परिचय दिया गया है । इस विषय में आचार्य ने इस प्रकार कहा है : ।
इति लोकव्यवहारं गुरुपद विनयादवाप्य कविः सारम् । नवनवभणितिश्रव्यं करोति सुतरां क्षणात् काव्यम् ॥
चतुर्थ परिच्छेद में सारभूत वस्तुओं का निर्देश करके उन उन नामों के निर्देशपूर्वक प्राचीन महाकवियों के काव्यों का और जैनगुरुओं के रचित शास्त्रों का अभ्यास करना आवश्यक बताया है। दूसरा क्रियानिर्णय परिच्छेद व्याकरण के धातुओं का और पाँचवाँ अनेकार्थशब्दसंग्रह - परिच्छेद शब्दों के एकाधिक अर्थों का ज्ञान कराता है। छठे परिच्छेद में रसों का निरूपण है । इससे यह मालूम होता है कि आचार्य विनयचन्द्रसूरि अलंकार - विषय के अतिरिक्त व्याकरण और कोश के विषय में भी निष्णात थे । अनेक ग्रन्थों के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि वे एक बहुश्रुत विद्वान् थे ।
कविशिक्षा और कवितारहस्य :
महामात्य वस्तुपाल के जीवन और उनके सुकृतों से सम्बन्धित 'सुकृतसंकीर्तनकाव्य' ( सर्ग ११, श्लोक संख्या ५५५ ) के रचयिता और ठक्कुर लावण्यसिंह के पुत्र महाकवि अरिसिंह महामात्य वस्तुपाल के आश्रित कवि थे । ये १३ वीं शताब्दी में विद्यमान थे । ये कवि वायडगच्छीय आचार्य जीवदेवसूरि के भक्त थे और कवीश्वर आचार्य अमरचन्द्रसूरि के कलागुरु थे ।
आचार्य अमरचन्द्रसूरि ने 'कविशिक्षा ' नामक जो सूत्रबद्ध ग्रन्थ रचा है तथा उसपर जो 'काव्यकल्पलता' नामक स्वोपज्ञ वृत्ति बनाई है उसमें कई सूत्र इन अरिसिंह के रचे हुए होने का आचार्य अमरसिंहसूरि ने स्वयं उल्लेख किया है :
सारस्वतामृतमहार्णवपूर्णिमेन्दो
१११
मत्वाऽरिसिंह सुकवेः कवितारहस्यम् ।
किञ्चिच्च तद्रचितमात्मकृतं च किञ्चिद्
Jain Education International
व्याख्यास्यते त्वरितकाव्यकृतेऽत्र सूत्रम् ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org