Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
१२५
अलङ्कार
कारों के ६२० पद्य उदाहरणरूप में दिये हैं। अपने पूर्व के ग्रंथकार भामह, वामन, अभिनवगुप्त, उद्भट बगैरह के अभिप्रायों का उल्लेख कर अपना भिन्न मत भी प्रदर्शित किया है । मम्मट के बाद में होनेवाले आलंकारिकों ने 'काव्यप्रकाश' का यथेच्छ उपयोग किया है और उस पर अनेक टीकाएँ बनाई हैं, यही उसकी लोकप्रियता का प्रमाण है ।
इस 'काव्यप्रकाश' पर राजगच्छीय आचार्य सागरचंद्र के शिष्य माणिक्यचंद्रसूरि ने संकेत नाम की टीका की रचना की है जो उपलब्ध टीकाओं में काफी प्राचीन है । इन्होंने वि० सं० 'रस-वक्त्र ग्रहाधीश' का उल्लेख किया है, जिसका अर्थ कोई १२१६, कोई १२४६, और कोई १२६६ करते हैं । आचार्य माणिक्यचंद्रसूरि मंत्री वस्तुपाल के समकालीन थे इसलिये वि० सं० १२६६ उपयुक्त जँचता है।
आचार्य माणिक्यचंद्र ने अपने पूर्वकालीन ग्रंथकारों की कृतियों का भी पर्याप्त उपयोग किया है । आचार्य हेमचंद्रसूरि के 'काव्यानुशासन' की स्वोपज्ञ 'अलंकारचूडामणि' और 'विवेक' टीकाओं से भी उपयोगी सामग्री उद्धृत की है।
काव्यप्रकाश - टीका :
तपागच्छीय मुनि हर्षकुल ने 'काव्यप्रकाश' पर एक टीका रची है। मे विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में हुए थे ।
सारदीपिका-वृत्ति :
खरतरगच्छीय आचार्य जिनमाणिक्यसूरि के शिष्य विनयसमुद्रगणि के शिष्य गुणरत्नगणिने 'काव्यप्रकाश' पर १०००० लोक प्रमाण 'सारदीपिका" नामक टीका की रचना अपने शिष्य रत्नविशाल के लिये की थी ।
काव्यप्रकाश-वृत्ति :
आचार्य जयानन्दसूरि ने 'काव्यप्रकाश' पर एक वृत्ति लिखी है जिसका श्लोक-प्रमाण ४४०० है ।
१. इसकी हस्तलिखित प्रति पूना के भांडारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट में है ।
२.
विलोक्य विविधाः टीका अधीत्य च गुरोर्मुखात् ।
काव्यप्रकाशटी केयं
रच्यते
सारदीपिका ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org