Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
१२१
पद्य हैं । इसके तीन उल्लासों में शृङ्गार का प्रतिपादन है और चतुर्थ में रसों का। इसमें नौ रस स्वीकार किये गये हैं।'
ग्रन्धकार की अन्य रचनाएँ इस प्रकार हैं :
१. रायमलाभ्युदयकाव्य (वि० सं० १६१५ ), २. यदुसुन्दरमहाकाव्य, ३. पार्श्वनाथचरित, ४. जम्बूस्वामिकथानक, ५. राजप्रश्नीयनाट्यपदभञ्जिका, ६. परमतव्यवच्छेदस्याद्वादद्वात्रिंशिका, ७. प्रमाणसुन्दर, ८. सारस्वतरूपमाला, ९. सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव, १०. हायनसुन्दर, ११. षड्भाषागर्भितनेमिस्तव, १२. वरमालिकास्तोत्र, १३. भारतीस्तोत्र । कविमुखमण्डन :
खरतरगच्छीय साधुकीर्ति मुनि के शिष्य महिमसुंदर के शिष्य पं० ज्ञानमेरु ने 'कविमुखमण्डन' नामक अलंकार-ग्रंथ की रचना की है। ग्रन्थ का निर्माण दौलतखाँ के लिये किया गया, ऐसा उल्लेख कवि ने किया है।
पं० ज्ञानमेरु ने गुजराती भाषा में 'गुणकरण्डगुणावलीरास' एवं अन्य ग्रन्थ रचे हैं । यह रास-ग्रन्थ वि० सं० १६७६ में रचा गया । कविमदपरिहार :
उपाध्याय सकलचंद्र के शिष्य शांतिचंद्र ने 'कविमदपरिहार' नामक अलंकारशास्त्रसंबंधी एक ग्रंथ की रचना वि. सं. १७०० के आसपास में की है, ऐसा उल्लेख जिनरत्नकोश, पृ० ८२ में है। कविमदपरिहार-वृत्तिः ___ मुनि शांतिचन्द्र ने 'कविमदपरिहार' पर स्वोपश वृत्ति की रचना की है। मुग्धमेधालंकार:
'मुग्धमेधालंकार' नामक अलंकारशास्त्रविषयक इस छोटी-सी कृति' के कर्ता रत्नमण्डनगणि हैं। इसका रचना-समय १७ वीं शती है।
, यह ग्रंथ प्राध्यापक सी० के० राजा द्वारा संपादित होकर गंगा मोरियण्टल
सिरीज, बीकानेर से सन् १९४३ में प्रकाशित हुआ है। २. यह 'राजस्थान के जैन शास्त्र-भंडारों की ग्रन्थसूची' भा० २, पृ० २७८ में
सूचित किया गया है । इस ग्रन्थ की १० पत्रों की प्रति उपलब्ध है। ३. 'जैन गुर्जर कविओ' भा०.१, पृ० १९५; भाग, ३, खंड, १, पृ. ९७९. ४. यह २ पत्रात्मक कृति पूना के भांडारकर मोरियंटल इन्स्टीट्यूट में है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org