Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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इन्होंने निदर्शन में ही कर दिया है । स्वभावोक्ति और अप्रस्तुतप्रशंसा को इन्होंने क्रमशः जाति और अन्योक्ति नाम दिया है ।
हेमचंद्र की साहित्यिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
१. साहित्य-रचना का एक लाभ अर्थ की प्राप्ति, जो मम्मट ने कहा है, हेमचंद्र को मान्य नहीं है ।
२. सुकुल भट्ट और मम्मट की तरह लक्षणा का आधार रूढ़ि या प्रयोजन न • मानते हुए सिर्फ प्रयोजन का ही हेमचंद्र ने प्रतिपादन किया है।
३. अर्थशक्तिमूलक ध्वनि के १. स्वतः संभवी, २. कविप्रौढोक्तिनिष्पन्न और ३. कविनिबद्धवक्तृप्रौढोक्तिनिष्पन्न- ये तीन भेद दर्शानेवाले ध्वनिकार से हेमचंद्र ने अपना अलग मत प्रदर्शित किया है ।
४. मम्मट ने 'पुंस्वादपि प्रविचलेत्' पद्य श्लेषमूलक अप्रस्तुतप्रशंसा के उदाहरण में लिया है, तो हेमचंद्र ने इसे शब्दशक्तिमूलक ध्वनि का उदाहरण बताया है ।
५. रसों में अलंकारों का समावेश करके बड़े-बड़े कवियों ने नियम का उल्लंघन किया है । इस दोष का ध्वनिकार ने निर्देश नहीं किया, जबकि हेमचंद्र ने किया है ।
'काव्यानुशासन' में कुल मिलाकर १६३२ उद्धरण दिये गये हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने साहित्य-शास्त्र के अनेकों ग्रन्थों का गहरा परिशीलन किया था ।
हेमचंद्र ने भिन्न-भिन्न ग्रन्थों के आधार पर अपने 'काव्यानुशासन' की रचना की है अतः इसमें कोई विशेषता नहीं है, यह सोचना भी हेमचंद्र के प्रति अन्याय ही होगा, क्योंकि हेमचंद्र का दृष्टिकोण व्यापक एवं शैक्षणिक था ।
काव्यानुशासन-वृत्ति (अलङ्कार चूडामणि ) :
'काव्यानुशासन' पर आचार्य हेमचंद्र ने शिष्यहितार्थ 'अलंकारचूडामणि' नामक स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की रचना की है। हेमचंद्र ने इस वृत्ति - रचना का हेतु बताते हुए कहा है : आचार्य हेमचन्द्रेण विद्वत्प्रीत्यै प्रतन्यते ।
यह वृत्ति विद्वानों की प्रीति संपादन करने के हेतु बनाई है। यह सरल है । इसमें कर्ता ने विवादग्रस्त बातों की सूक्ष्म विवेचना नहीं की है। यह भी कहना ठीक होगा कि इस वृत्ति से अलंकारविषयक विशिष्ट ज्ञान संपन्न नहीं हो सकता । वृत्तिकार ने इसमें ७४० उदाहरण और ६७ प्रमाण दिये हैं ।
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