Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास ___हेमचंद्र ने व्याकरण-ज्ञान को सक्रिय बनाने के लिये और विद्यार्थियों को भाषा का ज्ञान सुलभ करने के लिये संस्कृत और देश्य भाषा के कोशों की रचना इस प्रकार की है : १. अभिधानचिंतामणि सटीक, २. अनेकार्थसंग्रह, ३. निघण्टुसंग्रह और ४, देशीनाममाला ( रयणावली)। ____ आचार्य हेमचंद्र ने कोश की उपयोगिता बताते हुए कहा है कि बुधजन वक्तत्व और कवित्व को बिद्वत्ता का फल बताते हैं, परन्तु ये दोनों शब्दज्ञान के बिना सिद्ध नहीं हो सकते ।
'अभिधानचिंतामणि' की रचना सामान्यतः 'अमरकोश' के अनुसार ही की गई। यह कोश रूढ, यौगिक और मिश्र एकार्थक शब्दों का संग्रह है। इसमें छः कांडों की योजना इस प्रकार की गई है :
प्रथम देवाधिदेवकांड में ८६ श्लोक हैं, जिनमें चौबीस तीर्थकर, उनके अतिशय आदि के नाम दिये गये हैं।
द्वितीय देवकांड में २५० श्लोक हैं। इसमें देवों, उनकी वस्तुओं और नगरों के नाम हैं।
तृतीय मर्यकांड में ५९७ श्लोक हैं। इसमें मनुष्यों और उनके व्यवहार में आनेवाले पदार्थों के नाम हैं।
चतुर्थ तिर्यकांड में ४२३ श्लोक हैं। इसमें पशु, पक्षी, जंतु, वनस्पति, खनिज आदि के नाम हैं।
पञ्चम नारककांड में ७ श्लोक हैं। इसमें नरकवासियों के नाम हैं।
छठे साधारणकांड में १७८ श्लोक हैं, जिनमें ध्वनि, सुगंध और सामान्य पदार्थों के नाम हैं।
ग्रन्थ में कुल मिलाकर १५४१ श्लोक हैं।
हेमचन्द्र ने इस कोश की रचना में वाचस्पति, हलायुध, अमर, यादवप्रकाश, वैजयन्ती के श्लोक और कान्य का प्रमाण दिया है । 'अमर-कोश' के कई श्लोक इसमें प्रथित हैं।
१. एकार्थानेकार्था देश्या निर्घण्ट इति च चत्वारः । विहिताश्च नामकोशा भुवि कवितानव्यपाध्यायाः॥
-प्रभावक-चरित, हेमचन्द्रसूरि-प्रबन्ध, श्लोक ८३३. २. वक्तृत्वं च कवित्वं च विद्वत्तायाः फलं विदुः ।
शन्दज्ञानादृते तन्त्र द्वयमप्युपपद्यते ॥
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