Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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कोश
है। हेमचंद्ररचित 'देशीनाममाला' ( रयणावली ) में भी धनपाल का उल्लेख है । 'शार्ङ्गधर-पद्धति' में धनपाल के कोशविषयक पद्यों के उद्धरण मिलते हैं और एक टिप्पणी में धनपालरचित 'नाममाला' के १८०० श्लोक-परिमाण होने का उल्लेख किया गया है । इन सब प्रमाणों से मालूम होता है कि धनपाल ने संस्कृत और देशी शब्दकोश ग्रंथों की रचना की होगी, जो आज उपलब्ध नहीं हैं।
इनके रचित अन्य ग्रंथ इस प्रकार हैं
:
१. तिलकमञ्जरी ( संस्कृत गद्य), २. श्रावकविधि ( प्राकृत पद्य ), ३. ऋषभपञ्चाशिका ( प्राकृत पद्य ), ४. महावीरस्तुति ( प्राकृत पद्म ), ५. सत्यपुरीयमंडन- महावीरोत्साह ( अपभ्रंश पद्य ), ६. शोभनस्तुति - टीका ( संस्कृत गद्य ) ।
धनञ्जयनाममाला :
धनंजय नामक दिगंबर गृहस्थ विद्वान् ने अपने नाम से 'धनञ्जयनाममाला” नामक एक छोटे से संस्कृतकोश की रचना की है ।
माना जाता है कि कर्ता ने २०० अनुष्टुप् श्लोक ही रचे हैं। किसी आवृत्ति में २०३ श्लोक हैं तो कहीं २०५ श्लोक हैं
धनञ्जय कवि ने इस कोश में एक शब्द से शब्दांतर बनाने की विशिष्ट पद्धति बताई है । जैसे, 'पृथ्वी' वाचक शब्द के आगे 'घर' शब्द जोड़ देने से पर्वत - वाची नाम बनता है, 'मनुष्य' वाचक शब्द के आगे 'पति' शब्द जोड़ देने से वाचक शब्द के आगे 'चर' शब्द जोड़
नृपवाची नाम बनता है और 'वृक्ष' देने से वानरवाची नाम बनता है ।
इस कोश में २०१ वां श्लोक इस प्रकार है :
पूज्यपादस्य
९
प्रमाणमकलङ्कस्य द्विसन्धानकवेः काव्यं
लक्षणम् । रत्नत्रयमपश्चिमम् ॥
इस श्लोक में 'द्विसन्धान' कार धनञ्जय कवि की प्रशंसा है, इसलिए यह श्लोक मूल ग्रंथकार का नहीं होगा, ऐसा कुछ विद्वान् मानते हैं । पं० महेन्द्र
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१. धनन्जय नाममाला, अनेकार्थनाममाला के साथ हिंदी अनुवादसहित, चतुर्थ भावृत्ति, हरप्रसाद जैन, वि. सं. १९९९.
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