Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास है । आख्यात में ६ पाद हैं, कृत् में चार पाद हैं, तद्धित में ८ पाद हैं। इस प्रकार यहाँ चार प्रकरण गिनाये हैं उनको प्रकरण नहीं अपितु वृत्ति कहते हैं । बृहद्वृत्ति-दुढिका :
मुनि सौभाग्यसागर ने वि० सं० १५९१ में 'सि० श०' पर ८००० श्लोकप्रमाण 'वृहद्वृत्ति कुँटिका' की रचना की है। यह चतुष्क, आख्यात, कृत् और तद्धित प्रकरणों पर ही है। बृहद्वृत्ति दीपिका: ___मि० श०' पर विजयचन्द्रसूरि और हरिभद्रसूरि के शिष्य मानभद्र के शिष्य विद्याकर ने 'दीपिका' की रचना की है। कक्षापट-वृत्ति :
__'सि० श०' की स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति पर 'कक्षापटवृत्ति' नाम से ४८१८ दलोक-प्रमाण वृत्ति की रचना मिलती है। 'जैन ग्रन्थावली' पृ० २९९ में इस टीका को 'कक्षापट्ट' और 'बृहद्वृत्ति-विषमपदव्याख्या' ये दो नाम दिये गये हैं । बृहद्वृत्ति-टिप्पन :
वि० सं० १६४६ में किसी अज्ञात नामा विद्वान् ने 'सि० श०' पर 'वृहद्वृत्ति-टिप्पन' की रचना की है।
मोदाहरण-वृत्ति ___ यह 'सि० श०' की बृहवृत्ति के उदाहरणों का स्पष्टीकरण हो ऐसा मालूम होता है । जैन ग्रन्थावली, पृ० ३०१ में इसका उल्लेख है। परिभापा-वृत्ति
यह 'सि० श०' की परिभाषाओं पर वृत्तिस्वरूप ४००० श्लोक-प्रमाण ग्रन्थ हैं । 'वृहटिप्पणिका' में इसका उल्लेख है। हेमदशपादविशेष और हैमदशपादविशेषार्थ :
'सि० श०' पर इन दो टीका ग्रन्थों का उल्लेख 'जैन ग्रन्थावली' पृ० २९९ में मिलता है। बलाबलसूत्रवृत्ति
आचार्य हेमचन्द्रसूरि निर्मित 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' व्याकरण की स्वोपज्ञ वृहदद्वनि में से संक्षेप करके किसी अज्ञात आचार्य ने 'बलाबलसूत्रवृत्ति' रची है।
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