Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
व्याकरण
इस व्याकरण पर मल्लवादी नामक श्वेतांबर जैनाचार्य ने न्यास ग्रंथ की रचना की ऐसा उल्लेख प्रभावकचरितकार ने किया है। आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने अपने 'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' की स्वोपश टीका में उस न्यास में से उद्धरण दिये हैं, और 'गणरत्नमहोदधि' (पृ०७१, ९२) में भी 'विश्रान्तविद्याधरन्यास' का उल्लेख मिलता है।
श्वेतांबर जैनसंघ में मल्लवादी नाम के दो आचार्य हुए हैं : एक पांचवीं सदी में और दूसरे दसवीं सदी में। इन दो में से किस मल्लवादी ने 'न्यास' की रचना की यह शोधनीय है। यह न्यास-ग्रंथ अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है इसलिये इसके विषय में कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
पांचवीं सदी में हुए मल्लवादी ने अगर इसकी रचना की हो तो उनका दूसरा दार्शनिक ग्रंथ है 'द्वादशारनयचक्र'। यह ग्रंथ वि० सं० ४१४ में बनाया गया। पदव्यवस्थासूत्रकारिका:
विमलकीर्ति नामक जैन मुनि ने पाणिनिकृत अष्टाध्यायी के अनुसार संस्कृत धातुओं के पद जानने के लिये 'पदव्यवस्थाकारिका' नाम से सूत्रों को पद्यरूप में प्रथित किया है । इसके कर्ता ने खुदको विद्वान् बताया है । इसकी टीका वि० सं० १६८१ में रची गई इसलिये उसके पहिले इस ग्रंथ की रचना हुई है। पदव्यवस्थाकारिका-टीका:
'पदव्यवस्थासूत्रकारिका' पर मुनि उदयकीर्ति ने ३३०० श्लोक-प्रमाण टीका की रचना की है। मुनि उदयकीर्ति खरतरगच्छीय साधुकीर्ति के शिष्य थे। उन्होंने बालजनों के बोध के लिये वि० सं० १६८१ में इस टीका-ग्रंथ की रचना की है।
भांडारकर ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट, पूना के हस्तलिखित संग्रह की सूची, भा० २, खण्ड १, पृ० १९२-१९३ में दिये हुए परिचय के मुताबिक इस ग्रंथ की मूलकारिकासहित प्रति वि० सं० १७१३ में सुखसागरगणि के शिष्य मुनि समयहर्ष के लिये लिखी गई थी ऐसा अन्तिम पुष्पिका से ज्ञात होता है।
कर्ता के अन्य ग्रंथों के बारे में कुछ जानने में नहीं आया। १. शब्दशास्त्रे च विधान्तविद्याधरवराभिदे ।
न्यासं चक्रेऽल्पधीवृन्दबोधनाय स्फुटार्थकम् ॥-मल्लवादिचरित । २. संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास, भा० १, पृ० ४३२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org