Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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व्याकरण
परन्तु समकालीन आचार्य हेमचन्द्रसूरि का उल्लेख नहीं है। वैसे आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने भी इनका कहीं उल्लेख नहीं किया है। कई कवियों के नाम और कई स्थलों में कर्ता के नाम के बिना कृतियों के नाम का उल्लेख किया है।
इस ग्रन्थ से कई नवीन तथ्य जानने को मिलते हैं । जैसे-'भट्टिकाव्य' और 'द्वयाश्रयमहाकाव्य' की तरह मालवा के परमार राजाओं संबंधी कोई काव्य था, जिसका नाम उन्होंने नहीं दिया परन्तु उसे काव्य के कई इलोक उद्धृत किये हैं।
___ आचार्य सागरचन्द्रसूरिकृत सिद्धराजसम्बन्धी कई श्लोक भी इसमें उद्धृत किये हैं, इससे यह ज्ञात होता है कि उन्होंने सिद्धराज सम्बन्धी कोई काव्यरचना की थी, जो आज तक उपलब्ध नहीं हुई है ।
स्वयं वर्धमानसूरि ने अपने 'सिद्धराजवर्णन' नामक ग्रन्थ का 'ममैव सिद्धराजवर्णने' ऐसा लिखकर उल्लेख किया है। इससे मालूम होता है कि उनका 'सिद्धराजवर्णन' नामक कोई ग्रंथ था जो आज मिलता नहीं है ।
लिंगानुशासन
आचार्य पाल्यकीर्ति-शाकटायनाचार्य ने 'लिंगानुशासन' नाम की कृति की रचना की है। इसकी हस्तलिखित प्रति मिलती है। यह आर्या छन्द में रचित ७० पद्यों में हैं । रचना-समय ९ वी शती है।
धातुपाठ
आचार्य पाल्यकीर्ति-शाकटायनाचार्य ने 'धातुपाठ' की रचना की है। पं० गौरीलाल जैन ने वीर-संवत् २४३७ में इसे छपाया है। यह भी ९ वीं शती का ग्रन्थ है।
मंगलाचरण में 'जिन' को नमस्कार करके 'एधि वृद्धौ स्पर्धि संघर्षे' मे प्रारम्भ किया है। इसमें १३१७ (१२८०+३७ ) धातु अर्थसहित दिये हैं । अन्त में दिये गये सौत्रकण्डवादि ३७ धातुओं को छोड़ कर ११ गणों में विभक्त किये हैं। ३६ धातुओं का 'विकल्पणिजन्त' और चुरादि वगैरह का 'नित्यणिजन्त' धातु से परिचय करवाया है।
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