Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री विजय मुनि जी शास्त्री ने उन विज्ञ पाठकों एवं जिज्ञासुओं के लिये बहुत बड़ा उपकार किया है, जैन न्यायशास्त्र को संक्षिप्त एवं सारग्राही शैली में सरल तथा सहज भाषा प्रवाह में निबद्ध करके । पुस्तक को पढ़ने से स्वतः यह परिज्ञान होता है कि लेखक श्री विजय मुनिजी दर्शन एवं न्यायशास्त्र के अधिकारी विद्वान तो हैं ही, साथ ही ऐसे दुरूह विषय को सरल भाषा में प्रस्तुतीकरण की कला में भी निष्णात हैं। लगता है, अनेकानेक ग्रन्थ न केवल उनके कण्ठस्थ ही है, अपितु समग्र विषय को आत्मसात् किया है उन्होंने । ऐसा तभी सम्भव हो सकता है, जब तद् विषयक ग्रन्थों का अनेक बार पारायण/परिशीलन करके उन पर अपना चिन्तन भी किया गया हो। श्री विजय मुनि जी के लेखन की एक विशेषता है कि वे लिखने से पूर्व समग्र विषय को आत्मसात् कर लेते हैं, लिखते समय उद्धरण एवं संदर्भ के लिये वे किसी ग्रन्थ के पृष्ठ नहीं टटोलते, न ही किसी का अनुकरण करते हैं । स्वतन्त्र चिन्तन की स्याही में डूबकर उनकी लेखनी जो अंकित करती है, वह अपने विषय का प्रामाणिक और प्रसादपूर्ण प्रतिपादन होता है । भारत के सभी दर्शनों का, न्याय ग्रन्थों का उन्होंने अनेक बार परिशीलन किया है, तथा पाश्चात्य दर्शन, न्याय एवं मनोविज्ञान का भी पर्याप्त ज्ञान रखते हैं । यही कारण है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में वे न्यायशास्त्र-नय-निक्षेपप्रमाण जैसे महत्वपूर्ण और गम्भीर विषयों को धाराप्रवाह तुलनात्मक ढंग से प्रस्तुत करते गए हैं । पाठकों को यह और भी रुचिकर लगेगा कि नयनिक्षेप विवेचन में व्याकरण और काव्यशास्त्र की पृष्ठभूमि को स्पर्श करते हुए शब्द शास्त्रीय समीक्षा के साथ नय निक्षेप की तुलना और सार्वजनीन उपयोगिता का भी दिग्दर्शन कराया गया है, जो एक स्वतन्त्र चिन्तन तथा गम्भीर अध्ययन की फलश्र ति मानी जायेगी। आप मूर्धन्य चिन्तक राष्ट्रसन्त उपाध्याय श्री अमरमुनि जी के प्रमुख विद्वान सन्त हैं, साथ ही जैन श्रमण की आदर्श त्याग-परम्परा समन्वयवृत्ति एवं बहुश्रुतता के साक्षात् प्रतीक हैं । स्वभाव से निस्पृहा निरपेक्ष वृत्ति के श्री विजयमुनि जी अत्यन्त उदारवादी, मिलनसार, समताभावी श्रमण हैं। आपश्री का यह अद्वितीय ग्रन्थ जैन न्यायशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण For Private and Personal Use Only

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