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नयी उद्भावनायें होती हैं। इन उद्भावानाओं की मौलिकता और नवीनता काव्य या साहित्य क लिये नये रसबोध की धरती तैयार करती हैं, नयी दृष्टि का निर्माण करती है और किसी विशेष विद्या का सृजन प्रक्रिया और आधार फलक में नये मोड़ और चुनाव की सभावनाओं को दृढ़ करती हैं।40
समराइच्चकहा:-जैन साहित्य मे हरिभद्र नाम के आठ आचार्यों का विवरण प्राप्त होता है।1 कुवलयमाला+2 के कथाकार उद्योतनसूरि (700 शक) ने इन्हें अपने गुरू के रूप में मान्यता दी है। समराइच्च कहा43 में उज्जैन के राजा और प्रतिनायक अग्निशर्मा के नौ भवों का उल्लेख है। हरिभद्र सूरि इसके रचयिता है और इनका नाम पादलिप्त और बप्पभट्टि आचार्यों के साथ सम्मान पूर्वक स्मरण किया जाता है। सिद्धर्षि और उद्योत सूरि ने हरिभद्र सूरि के प्रभाव को स्वीकार किया है। हरिभद्र चित्तौड के रहने वाले थे। संस्कृत और प्राकृत के महान पंडित थे। आगमों पर टीकायें इन्होंने लिखी है। समराइच्चकहा को इन्होंने धर्म-कथा की संज्ञा दी है। समराइच्च कहा जैन महाराष्ट्री प्राकृत में रचित है। इस रचना में शौर सेनी का भी प्रभाव है। इसका पद्यभाग आर्याछंद में लिखित है। भाषा सरल और प्रवाहयुक्त है। इसके वर्णनों का सादृश्य बाणभटट की कादंबरी से है।
प्रथम भव की कथा में गुण सेन और अग्निशर्मा की कथा-वस्तु में धार्मिक कथा की प्रतिष्ठा की गयी है। निदान'+ अर्थात विषय-भोग की चाह साधना सम्पन्न होने पर भी अनेक जन्मों में दुःख देती है।
___ द्वितीय भवमें सिंह कुमार, कुसुमावली और आनन्द की कथायें हैं। इस कथा का प्रारम्भ प्रेम प्रसंग से होता है। विवाह विधि अनेक रोचक प्रक्रियाओ के वाद आती है, हठात निश्चय के बाद नहीं ।
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