Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 170
________________ 21. तत्रैव, 391 22. तत्रैव, 294 । 23. तत्रैव, 337-381 24. तत्रैव, 3391 25. तत्रैव, 173। 26. तत्रैव, 336-यह उपवास चौदह वर्ष तीन मास और बीस दिनों का होता था। 27. तत्रैव, 184, 236-(1) दर्शन, (2) व्रत, (3) सामायिक, (4) पोसधोपवास (5) सच्चा त्याग (6) गत्रि __ भोजन त्याग (7) ब्रह्मचर्य। 28. वासुदेव हिण्डी (प्र. ख.) 52। 29. तत्रैव, 304। 30. तत्रैव, 1331 31. तत्रैव 23, 12, 1401 32. वासुदेव हिण्डी (द्वि. ख.) II 121 ए। 33. तत्रैव, II 120 ए. बी. विद्याधर ने एक बड़ी झील की पूजा करते समय भूप, पुष्प और बलि अर्पित किया। 34. तत्रैव, II. 120 ए.। 35. तत्रैव, II. 148 ए.। 36. तत्रैव, II. 174 ए.। 37. वासुदेव हिण्डी (प्र. ख.), 141 38. तत्रैव, 301 39. तत्रैव, 192-93 । 40. तत्रैव, 3371 41. तत्रैव, 125, 273। 42. तत्रैव, 2881 43. तत्रैव, 4-जम्बू वंश की किसी भी राजकुमारी ने पीढ़ियों तक सन्यास नही ग्रहण किय । 44. तत्रैव, 1171 45. तत्रैव 272। 46. तत्रैव, 20-22। 47. तत्रैव, 22। 48. तत्रैव, 343, वासुदेव हिण्डी (द्वि. ख.) II. 18 ए, ।

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