Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University
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356. सर्वदर्शन संग्रह पृ. 33 357. प्राचीन यूनान में डिमोक्रिहस और एम्पेड़ोक्लीज के अणु-सम्बन्धी मतो का अन्नर इसमें कुछ मिलता
जुलता है। 358. सर्वदर्शन संग्रह पृ. 36 359. गुणरत्न पृ. 58-9 360. इस सिद्धानत का न केवल पुल में बल्कि सन्क अन्य रूपों में भी अनुप्रयोग गुणग्न्न, पृष्ट 57-8 द्रष्टव्य
361. छान्दोग्य उपनिषद 7.2.2 362. मुण्डक उपनिषद 2.1.1 363. सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्राणि मोक्षमार्ग उमास्वाति. 1.1 364. जैकोबी सेक्रेड बुक्स ऑव दि ईस्ट 22 जिल्ट 22 पृ. XXII इत्यादि । 365. कुवलयमाला 204, 27 366.ललितविस्तर (अ. 17) 367. मालतीमाधव (अंक 1 368. समराइच्चकहा भव4 369. उत्तरार्ध पृ. 281 370. यस्तिलक एण्ड इंडियन कल्चर, पृ. 356. 57 371. कुवलमाला 63.22 372. तत्रैव 225-31 373. द्रष्टव्य ब्रहाम्सूत्र 2. 2. 35-36 रामानुज का भाष्य 37+. यशास्तिलक, उत्तरार्ध, पृ. 269 375. कुवलयमाला 225, 27 376. भण्डारकर, वै. वै. धा. मा. पृ. 113, 24 377. समराइच्चकहा 1, पृ. 38:5 पृ. 392; 7, पृ. 664, 667 378. तत्रैव 1, पृ. 14 379. तत्रैव 1पृ. 12, 14, 17, 26. 36-40 380. तत्रैव 1, पृ. 42-43 381. तत्रैव 1, पृ. 16, 5 420, 422-23 382. महाभाष्य 3/1//15 पृ. 55

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