Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University
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298. तत्रैव पृ. 49 299. समराइच्च कहा 7, पृ. 638, 8 पृ 757, 9 पृ. 962 300. वदी 8, पृ. 757 301. ऋग्वेद 8/1713 302. तत्रैव 8/17/5 303. तत्रैव 10/97/8 304. तत्रैव 10/10517 305. तत्रैव 1/7/12. 8/55/3 306. मैक्डोनल वैदिक माइथालोजी, पृ. 55 307. ऋग्वेद 8/45/4, 10/103/2-3 308. तत्रैव 8/17/10, अथर्व. 6/82/3 309. अथर्ववंट 8/85/8 310. ऋग्वेद 3/51/8, 5/30/5. 8/45/4 311. तत्रैव 1/6/14 312. मैक्डोनल वैदिक माइथालोजी पृ. 54 313. तत्रैव पृ. 54 314. समराइच्च कहा 6, पृ. 521 315. अथर्ववेद 11/6-23 316. अग्रवाल वासुदेवशरण, प्राचीन भारतीय लोक धर्म, पृ. 9 18-9 317. आयारंग 1, 5,6 318. तत्रैव 319. आयारंग1,5,5 320. उत्तरज्यण, 37, 67 321. आयारंग 1,9,14 322. उत्तर 3.2 323. समराइच्चकहा 4, पृ. 314, 8. पृ. 826 324. तत्रैव 4, पृ. 342, 5, पृ. 390, 475. 486. 7, पृ. 623 325. तत्रैव 1 पृ. 13. 37. 5. पृ. 490, 7. पृ. 711, 8 पृ. 789 326. भगवती सूत्र 9 133 1387
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