Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 178
________________ 241. अंगविज्जा देवता विजय" अध्याय 51 पृ. 204 242. रघुवंश 4/5 243. मालविकाग्निमित्रम 5/30 244. विषणु महापुराण 1, 8, 15, 16, 14, 15 245. तत्रैव 1, 8, 23 246. समराइच्चकहा 9, पृ. 858 247. तत्रैव, 8, पृ. 731, 742, 765 248. तत्रैव 8, पृ. 731, 742 249. मट्टाचार्य ताशपद कल्ट ऑव ब्रहमा, पृ. 245 250. तत्रैव, पृ. 102 । 251. ऋग्वेद 4/53/2 252. तत्रैव, 10/21/1 253. ऋग्वेद 2/1/1/3 254. भगवद गीता अ. 13, श्लोक 16 । 255. समराइच्चमहा 7 पृ. 657 256. ऋग्वेद विण्णु सूक्त 257. तत्रैव 1/55/6 258. काणे पी. वी. धर्मशास्त्र का इतिहास भाग 1, पृ. 394 259. महाभारत शांतिपर्व 339/103/4 260. अग्रवाल वासुदेवशरण- प्राचीन भारतीय लोकधर्म पृ. 8-9 261. ईस्टर्न इण्डियन स्कूल ऑव मेडिवल स्कल्पचर प्लेट xL III XLIV । 262. दी कल्चर हेरिटेज ऑव इण्डिया, 4 पृ. 42 263. तैत्तिरीय अरण्यक 10/1/6 नारायण विदमहे वासुदेवाधि माहि ताव नो विष्णु प्रचोदयात 264. दी कल्चरल हेरिटेज ऑव इण्डिया, 4, पृ. 119 265. कुवलयमाला 13. 27 266 तत्रैव 26. 8.9 267. रिसर्चर, 2 पृ. 16 268. कुवलयमाला 63.25 269. कुवलय माला 68. 18 ( 172 )

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