Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University
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188. आप्टे- संस्कृत हिन्दी कोश प. 275 किम (क+डिमबा बराई हाम, दोश.कम और मिला
प्रकट करने के लिए शब्द के आदि में 'कु' के स्थान पर प्रयुक्त होता है, यथा-किसश्वा. किन्नरः बाया विकृत पुरुष और आदि। 189. रघुवंश 4/78, कुमार संभव 1/14 । 190. कादम्बरी अनुच्छेद 124 191. बनर्जी जे. एन. डेवलपमेन्ट ऑव हिन्दू आइक्नोग्राफी पृ. 353 1 192. समराइच्चकहा 6, पृ. 447,7 पृ. 685.9, पृ. 842,90 193. तत्रैव, पृ. 451 194. अंगविज्जा-देवता-विजय अ.51, पृ. 204-61 195. अग्रवाल वासुदेवशरण प्राचीन भारतीय लोक धर्म पृ. 119 । 196. समराइच्चकहा 6, पृ. 601 । 197. बनर्जी जे. एन. डवेलपमेन्ट ऑव हिन्दू आइक्नोग्रफी पृ. 207-81 198. विद्या प्रकाश-खजुराहो पृ. 141 । 199. बनर्जी जे. एन. डेवलपमेन्ट ऑव हिन्दू आइक्नोग्राफी पृ. 519-20 200. समराइच्चकहा 1, पृ. 56,2 पृ. 107, 109, पृ. 363, 412, 419.438, 439, 441,42-43.418, 453,-54-55-56-463, 6 पृ. 500.545.558,7, ..
. 681.02. . 336-37-749,780,9 पृ. 9391 201. तत्रैव 1, पृ. 56 202. तत्रैव 5, पृ. 468-69, 8, पृ. 775 203. तत्रैव 6, पृ. 607 204. तत्रैव 5, पृ. 367, 456, 6, पृ. 558, 7, पृ. 648 205. अंगविज्जा देवता विजय- अ. 51-पृ. 204-6। 106. रघवंश 2/60-तस्मिन्क्षणे पालयितुः प्रजानामुत्पश्यत: सिंह निपात मु ग्रम अवागमुख स्योपरि पुष्पवृष्टिः
पपात विद्याघर हस्तमुक्ता॥ 207. एन. एन. पिंजर -नोट्स आन टानीज ओसन स्टोर 215, पृ. :: 208. तत्रैव 4 पृ. 101 209. नोट्स आन टानीज ओसन स्टोरी 4, पृ. 46 । 210. समराइच्चकहा 6, पृ. 592, 9 पृ. 737 211. तत्रैव, 1, पृ. 56, 3, पृ. 172,8 पृ. 787 212. तत्रैव 8 पृ. 7371

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