Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 183
________________ 383. काशिका 3/1/88 384. महाभाष्य 2/3/36, पृ. 390 385. समराइच्चकहा 5, पृ. 471 386. तत्रैव 5. पृ. 415, 418, 422 387. तत्रैव 1, पृ. 16, 17, 21-22-23-24. 26. 31. 33. 41.5 पृ. 414. 418. (5. पृ. (56. 659. (691) 388. तत्रैव 1. पृ. 13,5 पृ. 436, 438, 6 पृ. 866: 9 पृ. 920, 922 389. तत्रैव 4. पृ. 272, 5 पृ. 423 390. नत्रैव 5. पृ. 436 391. रघुवंश 1/5/ 392. उत्तर रामचरित 3/48/ 393. कादम्बरी, अनुच्छेद 17 394. तत्रैव, अनुच्छेद 381 395. वशिष्ठ धर्मसूत्र 2/11/25 396. समराइच्चकहा 5, पृ. 410 11 423-24 397. तत्रैव 5, पृ. 4231 398. महाभाष्य 3/2/14 पृ. 212 399. आपस्तम्ब धर्म सूत्र 2,9,21.18,19 400. अभिज्ञान शाकुतल 126 401. अष्टाध्यायी 2:1:70 402. तत्रैव 2/1/70 403. मालविकाग्निमित्र 1/14 404. कुवलयमाला 150,27 405. वेदालंकार हरिदत्त भारत का सांस्कृतिक इतिहास पृ. 96 । 406. पातञ्जलयोग-प्रदीप पृ. 10 (महाभारत से उद्धृत) 407. तत्रैव, शंकर विष्णुसहस्त्रनाम भाप्य। 408. भगवद्गीता अध्याय 10, श्लोक 26 । 409. श्वेता. उप.-अध्याय 5, मंत्र 2 । 410. पातञ्जलयोग-प्रदीप पृ. 10 पंचशिखाचार्य । 411. तत्रैव वाचस्पति मिश्र।

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