Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 196
________________ में कपोतपाली 79 तथा कदम्बरी में सिखरेषु परावतमाला (पृ.26) का उल्लेख हुआ है कुवलयमाला में वर्णन है कि नगर की युवतियाँ सम्भवतः शिखरो चढ़ कर कपोतपाली के समीप से कुमार कुवलय चन्द्र को देख रही थी । उद्द्योतनसूरि ने धवलगृह का बितनी बार उल्लेख किया है । सर्वत्र उसे उपरीतल पर स्थित कहा है। इससे स्पष्ट है कि धवलगृह के द्वार में प्रवेश करते ही उपर जाने के लिए दोनों ओर सोपानमार्ग होता था । कुवलयमाला में भवन के छोटे कमरों के लिए कई शब्द प्रयुक्त हुए हैं। मायादित्य को जब चोर समझ कर पकड़ लिया गया तो उसे उपघर में बन्द करने का आदेश दिया गया 1800 उसके विलाप करने पर भी उसे घर-कोट्ट में बन्द कर दिया गया । 1 नरक के दुखों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वहाँ छोटे घरों के दरवाजे भी छोटे होते थे-घड़ियालयं मडहदारं 182 ये शब्द तत्कालीन भवन स्थापत्य में भी प्रयुक्त होते रहे होंगे । इन प्रमुख परिभाषिक शब्दों के अतिरिक्त उद्योतन ने भवन स्थापत्य के अतिरिक्त निम्नशब्दों का भी उल्लेख किया णिज्जूदय आलय + चुंपाल बेदिका घर पलिह कोट्ट्ठय कोणाओ 7, घरोवारिकुट्टिम द्वारसंघात 9 द्वारदेश), द्वारमूल' 1, मणिकुट्टिम -, मणिमयमिति हर्म्यतल’+ प्रसादतल”, प्रसाद" प्रसाद शिखर” उल्लको छत्त" इनके अतिरिक्त विनीता नगरी 99 कौसाम्बी नगरी 100 एवं समवसरण 101 स्थापत्य की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है । कुवलयमाला में तीन प्रकार के यन्त्रिक उपादानों का इन प्रसंगों में उल्लेख है । वासभवन की सज्जा में प्रियतम के आने की प्रतिक्षा के समय में यन्त्र शकुनों को मधु-संलाप में लगा दिया गया। 102 वासी में स्नान करते हुए किसी प्रोढ़ा ने लज्जा को त्यागकर जलयन्त्र की धार को अपने प्रियतम की दोनों आँखों पर कर दिया और लपककर अपने प्रेमी का मुख चूम लिया।103 यत्रजलघार से आकाश में मायामेघों द्वारा ढगे गये भवनों के हंस पावस ऋतु मानकर मानसरोवर को नहीं जाते थे। 104 उज्जयनी नगरी के जलयन्त्रों में मेघों की गर्जना होने से भवनों ( 190 )

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