Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 207
________________ अध्याय 5 उपसंहार जैन कथा साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लेखकों ने लोक प्रचलित कथाओं को आधार बनाकर उन्हे जैन धर्म के ढाँचे में ढाला है और धर्म-प्रचार के निमित्त एक नवीन रूप प्रदान कर श्रेष्ठ कथाओं का सृजन किया है। इन कथाओं की रचना के पीछे कथाकारों का मुख्य उद्देश्य धार्मिक सिद्धान्तों का प्रति पादन करना था। समराइच्च कहा में धर्मकथा के उद्देश्य से अवन्ति राज समराचित्य के रचित का वर्णन किया गया है। वासुदेव हिण्डी में श्रृंगार कथा के बहाने धर्म कथा का ही निरूपण है कुवलयमाला में बीच में कामशास्त्र की चर्चा आती है किन्तु इस को आक्षेपिणी धर्म कथा कहा जा सकता है। - सामान्य रूप से प्राकृत जैन कथाओं और बौद्ध पालि जातक कथाओं में सादृश्य देखने को मिलता है। पालि कथाओं में पूर्वजन्म कथा का मुख्य भाग रहता है इसके विपरीत प्राकृत कथाओं में यह केवल उपसंहार का कार्य कार्य करता है बौद्ध जातक कथाओं में एक प्रकार की रुढ़िवादी शैली की भरमार है परन्तु जैन प्राकृत कथाओं में विविधता देखने को मिलती है। प्राकृत कथा कार अपने सिद्धान्त को प्रत्यक्ष रूप से प्रतिष्ठापित नहीं करते बल्कि पात्रों के कथोप कथन और शील निरूप आदि के द्वारा सिद्धान्त की अभिव्यंजना करते हैं। प्राकृत कथाकार अपने पात्रों को सीधे नैतिक नहीं दिखलाते । चरित्र विकास के लिये ये किसी प्रेमकथा अथवा अन्य किसी लोक कथा के द्वारा उनके जीवन की विकृतियों को उपस्थित करते हैं। एक दीर्घ संघर्ष के पश्चात् पात्र किसी आचार्य या केवली को प्राप्त करता है और उनके सम्पर्क से उसके जीवन में नैतिकता का प्रवेश होता है कथा मनोरंजन के साथ आगे बढ़ती है।

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