Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 214
________________ भारतीय दर्शनों में बौद्ध दर्शन की हीन यान शाखा का उद्योतन ने उल्लेख किया है। लोकायत दर्शन के प्रसंग में 'अकाश' तत्व का उल्लेख पंचभूत के प्रभाव का परिणाम है । जैन धर्म को अनेकान्तदर्शन कहा जाता था। सांख्य कारिका का पठन-पाठन सांख्य दर्शन के अन्तर्गत होता था। त्रिदण्डी, योगी एवं चरक इस दर्शन का प्रचार कर रहे थे। दूसरी ओर कुछ सांख्य आलोचक भी थे। वैशेषिक दर्शन के प्रसंग में यह कहा जा सकता है कि कणाद-प्रणीत 'वैशेषिक सूत्र का पठन-पाठन होता था। मीमांसा-दर्शन के अन्तर्गत कुमारिल की विचार धारा अधिक प्रभावशाली थी। वेदान्त और योग दर्शन का पृथक उल्लेख नहीं मिलता न्यायदर्शन के 16 पदार्थो का वाचन किया जाता था। अन्य धार्मिक विचारकों में पंडर भिक्षुक, अज्ञानवादी, चित्र-शिखंडि नियतवादी आदि भी अपनी अपनी विचार धाराओं का प्रचार कर रहे थे। ___मूर्ति पूजा का व्यापक प्रचलन था। तीर्थकरों की मूर्तियों के अतिरिक्त यक्ष-यक्षियों की मूर्तियाँ भी मिलती हैं। यक्ष और विद्याधरों से सम्बन्धित अनेक उल्लेख जैन कथाओं में मिलते है। तांत्रिक पूजा का भी जैन धर्म में समावेश हो गया था। चक्रेश्वरी और ज्वालामालिनी की उपासना की लोकप्रियता को इसके उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता हैं कि प्राकृत जैन कथा साहित्य का अनुशीलन आठवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य की भारतीय संस्कृति को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इन कथाओं में लोक जीवन एवं धर्म का जैसा यथार्थवादी चित्रण प्राप्त होता है, वैसा संस्कृत साहित्य तथा पाली बौद्ध साहित्य में नहीं मिलता है। धर्म तथा नीति का उपदेश मनोरंजन कथाओं के माध्यम से दिया गया है। जैन धर्म तथा उसके अहिंसा मूलक सिद्धान्तों का प्रतिबिम्ब कथाओं में दृष्टिगोचर होता है। (209)

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