Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 209
________________ हर्टेल प्राकृत कथाओं की विशेषताओं से अत्यन्त आकृष्ट हैं। इन्होंने इस साहित्य की महन्ता का उल्लेख करते हुये बताया है “कहानी कहने की कला की विशिष्टता जैन कहानियों में पाई जाती है। ये कहानियाँ भारत के भिन्न-भिन्न वर्ग के लोगों के रस्म-रिवाज को पूर्ण सच्चाई के साथ अभिव्यक्त करती हैं। ये कहानियाँ जन साधारण की शिक्षा का उदगम स्थान ही नहीं हैं, वरन् भारतीय सभ्यता का इतिहास भी हैं। यह सत्य है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का यर्थाथ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्राकृत कथा साहित्य बहुत उपयोगी है। जन साधारण से लेकर राजा-महराजाओं तक के चरित्र को जितने विस्तार और सूक्ष्मता के साथ प्राकृत कथाकारों ने चित्रित किये हैं, उतना अन्य भाषाओं के कथाकारों ने नहीं। निम्नश्रेणी के व्यक्तियो का यथार्थ चित्रण इस साहित्य में उपलब्ध है। भाव, विचार घटना, चरित्र और प्रभावान्वित की दृष्टि से ये कथायें प्रथम श्रेणी में स्थान प्राप्त करने के योग्य हैं। जीवन में जितनी समस्यायें और परिस्थितियां आती हैं जिनसे नाना प्रकार के सत्य और सिद्धान्त निकाले जा सकते हैं, उनका यथेष्ट समावेश इन कथाओं मे पाया जाता है। प्राकृत की स्वतन्त्र कथा कृतियों में पात्रों की क्रियाशीलता और वातावरण की सजावट नाना प्रकार की भावभूमियों का सृजन करने में सक्षम हैं। प्राकृत कथाकारों में यह गुण प्राय: सभी में पाया जाता है कि वे पाठक के समक्ष जगत का वास्तविक चित्रण कर आत्मकल्याण की ओर प्रवृत्ति करने वाला कोई सिद्धान्त उपस्थित कर देते हैं। अत: जैन कथा साहित्य कथा उपकरणों की दृष्टि से परिपूर्ण है। प्राकृत कथाओं का स्वतन्त्र रूप से विकास तंरगवती से आरम्भ होता है। हरिभद्र ने तरंगवती और वासुदेवहिण्डी से रूपायन एवं उपादानों को ग्रहण कर अपनी महत्वपूर्ण कृति (204)

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