Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 181
________________ 327. समराइच्चकहा 2, पृ. 109 328. तत्रैव 7, पृ. 625, 8 पृ. 851 329. जैकोबी स्टडीज इन जैनिज्म, पृ. 20 330. ठाणग सूत्र 166-67 331. “दुख आत्मकृत है, न परकृत न उभय कःत" 332. आपारंग 1.3.3 333. कठ, 6-16 प्रश्न 3-7 334. आयारंग 1,9 . 335. उत्तर झयण, 30 336. समराइच्चकहा 7, पृ. 721,8 पृ. 811, 8259, पृ. 955-56 337. पातंजलयोगदर्शन, कैवल्यपाद सूत्र ॥ 6 ॥ 338. भगवद्गीता अध्याय 4-11-16 ।। 339. तत्रैव अध्याय 4- ॥ 17 ॥ 340. तत्रैव 7 पृ., 611 341. वासुदेव हिण्डी पृ. 14-31, 69 342. तत्रैव, पृ. 273 343. तत्रैवए 7 पृ. 719-20, 722, 724, 9, पृ. 930 344. तत्रैव 7, पृ. 612, 722 345. तत्रैव 6, पृ. 587-88, 9 पृ. 862-63, 941 346. भगवती सूत्र 12/2/443 347. भगवती सूत्र 10/2/396 348. गीता अ. 3 14 15 349. रामायण 2/53/10 350. मट्टाचार्य सुखमय महाभारत कालीन समाज पृ. 272 351. अष्टाध्यायी 6/2/152 352. अग्रवाल वासुदेवशरण पाणिनि कालीन भारतवर्ष पृ. 379 353. मार्कण्डेय पुराण 57/62/63 354. तत्रैव 20/36-37 355. कुवलयमाला 1511 ( 175)

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