Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 172
________________ 79. तत्रैव 3 पृ. 228, 5, पृ. 473, 480, 8, पृ. 812-13, 9. पृ. 953 80. शास्त्री कैलाशचन्द्र-जैन धर्म, पृ. 184-195, हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, __ पृ. 255 से 260, मोहनलाल मेहता, जैनाचार्य, पृ. 86-104 81. सूत्रकृतांग, श्रुत 2, अ. 23, सूक्त 3 (-सीलव्वय गुणविरमण पच्चवरवाणे सहोव वासेहि अय्याग भावे भाणों एव चरण विहरह) 82. उपासक दशांग अध्याय 1. सक्त 12, सक्त 58 (पंचार गव्वतियं सनसिक्खा वइयं वालम्म विह गिहिधम्म...) 83. समराइच्चकहा 1, पृ. 62 84. उपासक दशांग अध्याय 1, सूक्त 12, सक्त 58(- पली --निवइय द्वालम्माविह गिहिधम्म) 85. समराइच्चकहा 1, पृ. 57; हीरालाल जैन भारतीय संस्कृत मे जैन धर्म का योगदान, पृ. 261-62-मोहन लाल मेहता जैनाचार्य-पृ. 61-62 86. मोहनलाल मेहता-जैनाचार पृ. 89 से 124 88. समराइच्चकहा 1, पृ. 66-67, 3 पृ. 196-98, पृ. 585-86 89. समराइच्चकहा 2, पृ. 140-41, 4, पृ. 288, 8, पृ. 780 790 90. जैन हीरालाल-भारती संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 261 91. भगवतीसूत्र 25/6/802 92. दशवैकालिक सूत्र 6/8 93. उत्तराध्ययन सूत्र 77/5 94. समराइच्चकहा 5, पृ. 411; 7, पृ. 626 95. तत्रैव, 7, पृ. 6751 96. तत्रैव 6, पृ. 570; 9, पृ. 937। 97. तत्रैव 5, पृ. 497; 6 पृ. 598; 7 पृ. 721 । 98. तत्रैव 6, पृ. 526, 577, 579 । 99. तत्रैव 4, पृ. 355-561 100. समराइच्चकहा 3 पृ. 226 101. नायाधम्म कहा-1/281 102. बृहत्कल्प भाष्य-5/49491 103. समराइच्चकहा 1, पृ. 43; 6 पृ. 570; 7 पृ. 623; 8 पृ. 846,848,850, 856,9, पृ. 959। 104. तत्रैव 4, पृ. 353; 7, पृ. 7271 ( 166)

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