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समय आते ही विभिन्न तैयारियाँ होने लगीं। धान दले गए तथा । उसे साफ कर चावल तैयार किए गये91 । विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ बनवाई गयीं। खाद्य सामग्री को एकत्र किया गया। कुम्हारों से बर्तन मँगाये गये। मंच शाला तैयार करायी गयी धवल गृह को सजाया गया। वरवेदी रची गयी। बन्दनवार बँधवाया गया। रत्नों की परीक्षा करवाई गयी। हाथी, घोड़ों को सजाया गया राजाओं को निमन्त्रण भेजे गये। लेखवाह भेजे गये। बंधु जनों को आमंत्रित किया गया भवनों के शिखर सजाये गये, दीवालों की सफेदी की गई, गहने बनवाये गये, अंकुर रोपे गये, देवताओं की अर्चना की गई, नगर के चौराहे सजाये गये, कपड़ों के थान फाड़े गये, कुर्यासक सिलवाये गये, पताकाएँ फहरायी गयी तथा मनोहर चँवर तैयार करवाये गये। यहाँ तक कि उस नगर में कोई ऐसी महिला व पुरुष नहीं था जो कुवलयमाला के विवाह कार्य में प्रसन्नता पूर्वक व्यस्त नहीं था192 । विवाह की लग्न आते हो कुवलयमाला की माता ने अपने होने वाले दामाद को स्नेह पूर्वक स्नान करवाया। अपने वंश, कुल, देश, समय एवं लोकानुसार मांगलिक कौतुक किए। श्वेत वस्त्र पहिना कर तिलक किया, कंधे पर श्वेत पुष्पों का हार पहिना कर महेन्द्र के साथ मण्डप में लाया गाया193 । कुवलयमाला भी श्वेत वस्त्रधारण कर मांगलिक मोतियों के गहने पहनकर वेदी पर बैठ गयी। समय होते ही अग्नि होत्र शाला में अग्नि प्रज्वलित की गयी, क्षीर वृक्ष की समिधा और घी की आहुति दी गयी। कुल के वृद्ध जनों के समक्ष राजा के समक्ष, अनेक पेद पाठी ब्राह्मणों के मध्य लोकपालों को आमन्त्रित किया गया, दृढ़वर्मन् का नामलेकर कुमार के हाथ में कुवलय माला का हाथ दिया गया। कुमार ने जैसे ही कुमारी का हाथ पकड़ा तूरबज उठे, शंख फूंके जाने लगे, झल्लरी बजायी गयीं, पंडित मंत्र पढ़ने लग गये। ब्राह्मण मन्त्र पढ़ते हुये आहुति देने लगे और भँवर प्रारम्भ हो गये, चौथा भँवर पूरा होते ही जय-जय के शब्दों से मंडप गूंज उठा194 | महिलायं गीत गाने लगीं। विवाहोत्सव में गीत गाना अनिवार्य था क्योंकि ऐसे अवसरों पर गान केवल मनोरंजन का साधन नहीं था अपितु विश्वास किया जाता था कि यदि वे देवताओं को प्रसन्न करेंगे, तो वे अमंगलो को दूर करेंगे और वर-वधू को सौभाग्य प्रदान करेंगे195 ।
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