________________
19. वारातियों का स्वागत सत्कार,
20. हवन की क्रिया,
21. चारभांवर–पहले भांवरपर दहेज में सौ स्वर्ण कलश, दूसरी पर हार, कुण्डल, कर्धनी, कंगन तीसरी पर चांदी के थाल और चौथी वार भांवर पर मूल्यवान वस्त्र दिये गये।
बहुविवाह-जैन कथाओं में पुरुषों के बहुविवाह की चर्चा कई स्थानों पर की गयी है। एक पत्नी प्रथा को इन्होने सर्वोत्तम माना है और व्यवहार में एक ही विवाह की प्रथा थी परन्तु अपवाद स्वरूप एक से अधिक पत्नियों की भी प्रथा थी। हरिभद्र के पात्रों में राजा तो प्राय: एक-से अधिक विवाह करते हुए दिखलाई पड़ते हैं। राजा समारादित्य का विवाह विभ्रमवती
और कामलता नाम की दो कन्याओं के साथ हुआ था187 । सेठ अर्हदत्त ने चार विवाह किये थे188 । एक स्त्री के भी एक से अधिक पति होने की भी बात अपवाद स्वरूप पायी गई है। इस का संदर्भ हरि भद्र की एक लघुकथा में मिलती है। बताया गया है कि एक स्त्री के दो पति थे189 । वे दोनों सगे भाई थे। वह स्त्री उन दोनों को समानरूप से आदर करती थी। लोगों में यह चर्चा फैल गई कि संसार में एक ऐसी नारी है जो दो व्यक्तियों को समान रूप से प्यार कर सकती है। इस बात की लोगों ने जाँच पड़ताल की कि एक नारी दो व्यक्तियों को समानरूप से प्यार नहीं कर सकती है190 | जैन कथाओं के अनुसार अल्प आयु में नारी विधवा होने पर जन्मपर्यन्त तपस्या करती हुई धर्मसाधना करते देखी गई है। गुणश्री, रत्नमती, विलासवती के शील के उच्च रूप उपस्थित कर एक विवाह का ही समर्थन किया है। नारी के दो पति होने की बात अपवाद है।
कुवलयमाला में विवाहोत्सव का वर्णन है। कुमारी कुवलयमाला का विवाह निश्चित होने पर राजभवन में निम्न तैयारियाँ होने लगीं। ज्योतिषी को बुलाकर विवाह का मुहूर्त निकलवाया गया। ज्योतिषी ने फाल्गुन सुदी पंचमी दिन बुधवार को स्वातिनक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर बीत जाने एवं द्वितीय प्रारम्भ होने क समय लग्न का मूहूर्त बतलाया। लग्न का
( 45 )