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कर दिये थे ।178 एक अन्य प्रसंग में भी भूत-पिशाच के साथ राक्षसों को भी श्मशान में मांस खरीदने के लिए बुलाया गया है ।179
वेताल बैर गुप्त की कथा में वेताल मांस खरीदने श्मशान में आता है तथा उसके मांस को चख कर अग्नि में पकाकर हड्डियों सहित खरीदने को तैयार होता है। वैर गुप्त अपने मांस की कीमत के बदले एक चोर का रहस्य जानना चाहता है। वेताल उसके साहस और बलिदान पर प्रसन्न होकर उसे वर प्रदान करता है। 180 कच्चा मांस खरीदने के लिए वेताल वाण के समय में भी प्रसिद्ध थे। 181
किन्नरः समराहच्च कहा में किन्नरों का उल्लेख कई बार किया गया। 182 इनके क्रिया कलाप सर्वसाधारण लोगों से कुछ भिन्न होते थे। गन्धर्वो की भाँति ये भी संगीत के प्रेमी होते थे ।183 प्राकृत ग्रंथ अंगविज्जा में भी किन्नर-किनारी को देवताओं की श्रेणी में गिनाया गया है। 184 प्राचीन भारतीय लोक धर्म के अन्तर्गत किन्नरों के अस्तित्व में विश्वास किया जाता था।185
किन्नर का अर्थ बुरा या विकृत पुरूष कहा गया है। पुराणों में इसका सिर घोड़े का और शेष शरीर मनुष्य का बताया गया है।186 मानसार में भी किन्नारी को अश्व मुखवाली यक्षिणी के समान वर्णित किया गया है।187 इससे स्पस्ट होता है कि किन्नर का स्वरूप मनुष्यो से कुछ भिन्न ढंग का होता था जिसके कारण इन्हे विकृत पुरूष कहा गया है ।188 कालिदास ने भी किन्नरों का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है ।189 वाण भट्ट ने कादम्बरी में किन्नर मिथुन का उल्लेख किया है ।190 किन्नरो का स्वरूप हमें देवगढ़ ललितपुर जिले में से प्राप्त मूर्ति में देखने को मिलता है। किन्नर मिथुन एक लम्बे के नीचे खण्ड के अन्दर बने सुन्दर वृत्त में एक दूसरों के आमने-सामने खड़े दिखाई देते हैं, उनके ऊपर का भाग मनुष्य का है जो पंख से जुड़ा है, घुटने के नीचे वाला भाग भी मनुष्य जैसा है किन्तु पाँव पक्षी का है तथा गरूड़ की भाँति आश्चर्यजनक आँखें हैं।191
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